पैरों से कार चलाने वाले भारत के पहले व्यक्ति


कभी-कभी इंसान की हिम्मत और जिद उसे वहाँ पहुँचा देती है जहाँ तक पहुँचना नामुमकिन लगता है। ऐसी ही एक जबरदस्त मिसाल हैं विक्रम अग्निहोत्री। इनके दोनों हाथ नहीं हैं, लेकिन ये कार चलाते हैं – और वो भी बड़ी ही आसानी और आत्मविश्वास के साथ।

हाथ नहीं, पैर हैं ड्राइविंग का सहारा
विक्रम जी के दोनों हाथ नहीं हैं, लेकिन उन्होंने इसे कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। वे कार चलाने से लेकर शेविंग करने तक का हर काम अपने पैरों से करते हैं। इतना ही नहीं, उनके पैरों में इतनी फ्लेक्सिबिलिटी है कि वे बहुत आराम से स्टेयरिंग, ब्रेक और एक्सेलेरेटर का कंट्रोल कर लेते हैं।
वे कार की सीट को पूरी तरह पीछे कर लेते हैं और आराम से बैठकर ड्राइव करते हैं। दाहिना पैर स्टेयरिंग पर रहता है जिससे दिशा का नियंत्रण होता है, और बाएं पैर से वे ब्रेक और एक्सेलेरेटर को कंट्रोल करते हैं। उन्होंने अपने लिए एक छोटा सा बदलाव किया है कार में दो एक्सेलेरेटर लगाए गए हैं। हालांकि, एक बार में एक ही एक्सेलेरेटर काम करता है।

ड्राइविंग का अनुभव और चेतावनी
विक्रम की ड्राइविंग इतनी अच्छी है कि वे 130–140 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से भी आराम से कार चला लेते हैं। लेकिन वे हमेशा यह सलाह देते हैं कि गाड़ी को कंट्रोल में चलाना चाहिए। उनका मानना है कि जब गाड़ी बहुत तेज चलती है, तो उसके नीचे से बहने वाली हवा गाड़ी को हल्का बना देती है और कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है।
वे समझाते हैं कि तेज स्पीड वाली गाड़ियों जैसे फरारी या लैम्बॉर्गिनी की डिज़ाइन अलग होती है, इसलिए वे तेज स्पीड में भी कंट्रोल में रहती हैं। लेकिन आम गाड़ियों को हमेशा सुरक्षित और संतुलित स्पीड में ही चलाना चाहिए।
ड्राइविंग लाइसेंस मिलने का सफर
विक्रम को ड्राइविंग लाइसेंस मिलने में 15 महीने का समय लगा। RTO (रिज़नल ट्रांसपोर्ट ऑफिस) जब गए तो वहां कहीं नहीं लिखा था कि गाड़ी हाथों से ही चलानी चाहिए। उन्होंने टेस्ट दिया, जांच और वेरिफिकेशन की पूरी प्रक्रिया से गुज़रे, और अंत में उन्हें “IVC” कैटेगरी का लाइसेंस मिला। IVC का मतलब है “इनवैलिड कैरिज”, यानी ऐसा लाइसेंस जिसके तहत विकलांग व्यक्ति भी गाड़ी चला सकता है।
वे हमेशा यह लाइसेंस अपने पास रखते हैं और भारत में ही नहीं, विदेशों में भी इस लाइसेंस के साथ गाड़ी चला सकते हैं। आज उनकी वजह से भारत में 20 से ज़्यादा ऐसे लोग हैं जो बिना हाथों के पैरों से गाड़ी चलाते हैं और जिनके पास वैध लाइसेंस है।

प्रेरणा देने वाली कहानी
विक्रम अग्निहोत्री की कहानी हमें सिखाती है कि कोई भी शारीरिक कमी हमारे सपनों के रास्ते की रुकावट नहीं बन सकती। उन्होंने अपने आत्मविश्वास, मेहनत और समझदारी से यह साबित कर दिया है कि अगर मन में हौसला हो, तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं होता।
उनकी ज़िंदगी हम सभी के लिए एक प्रेरणा है, खासकर उन लोगों के लिए जो किसी न किसी वजह से खुद को कमजोर समझते हैं। विक्रम जी ने सिखाया है – "कमी में भी काबिलियत होती है, बस उसे पहचानने और निखारने की ज़रूरत है।"
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