बड़े सपने देखने के लिए बड़े साधन नहीं, बल्कि बड़ा जज़्बा चाहिए होता है। वडोदरा के एक साधारण से कमरे में बैठे एक असाधारण छात्र नील शाह ने इस कहावत को सच कर दिखाया है। आज जब पूरी दुनिया पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता कम करने के उपाय खोज रही है तब ऐसे युवा भारत का भविष्य रोशन कर रहे हैं। इन्होंने एक ऐसी सोलर साइकिल और एक नई तकनीक पर आधारित मोटर का निर्माण किया है जो पारंपरिक तकनीकों से कई गुना अधिक प्रभावशाली मानी जा रही है।

इनकी बनाई हुई साइकिल केवल 2 घंटे की धूप में पूरी तरह चार्ज हो जाती है। इसमें 24 वोल्ट की 15 एम्पीयर बैटरी लगी हुई है जिसे सोलर पैनल और डयनमोमीटर सिस्टम दोनों चार्ज करते हैं। अच्छी बात यह है कि डयनमोमीटर सिस्टम 1.5 एम्पीयर का करंट पैदा करता है जिससे बैटरी और भी तेजी से चार्ज होती है। इस पूरी साइकिल में उन्होंने पुराने पार्ट्स का इस्तेमाल किया जैसे कबाड़ से उठाई गई साइकिल, प्लास्टिक जार, और घरेलू सामग्री। फिर भी इसका प्रदर्शन किसी भी आधुनिक तकनीकी साइकिल से कम नहीं है।

अनोखी मोटर

इनकी मोटर में न तो कॉपर वाइंडिंग है न ही मैग्नेट। इसके बजाय इसमें एलुमिनियम का इस्तेमाल हुआ है और 4 इलेक्ट्रॉन्स एलुमिनियम के जोड़ने से इलेक्ट्रोस्टैटिक सिद्धांत पर यह मोटर काम करती है। जब इसमें हाई वोल्टेज पावर सप्लाई दी जाती है तो पॉजिटिव-नेगेटिव पोटेंशियल से एक तरफ से पुश और दूसरी तरफ से पुल होता है जिससे मोटर तेजी से घूमती है। यह न सिर्फ ऊर्जा की बचत करती है बल्कि स्पेस और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के लिए भी अत्यंत उपयोगी साबित हो सकती है।

छोटे से कमरे से शुरू होकर बड़े बदलाव की ओर

इन्होने यह सभी प्रयोग अपने छोटे से कमरे में किए। पढ़ाई के साथ-साथ वे साइंस के एक्सपेरिमेंट में भी डूबे रहते हैं। उन्हें फिजिक्स से खास लगाव है और वे 6वीं-7वीं कक्षा से ही 12वीं कक्षा की किताबें सॉल्व करते आ रहे हैं। आज भी वे फिजिक्स के कठिन कॉन्सेप्ट्स को समझने और दूसरों को समझाने में माहिर हैं।

शिक्षकों का विशेष योगदान

इस सफलता में उनके शिक्षकों का विशेष योगदान रहा है। स्कूल में संतोष कुमार सर और कॉलेज में प्रफुल केजा सर, जो कि फिजिक्स विभाग के HOD हैं उन्हें,नील को हमेशा मार्गदर्शन दिया । इन शिक्षकों की प्रेरणा और सहयोग से ही नील ने अपने विज्ञान के सपनों को आकार देना शुरू किया।

भविष्य की सोच 

यह साइकिल और मोटर केवल एक प्रयोग नहीं हैं ये एक बदलाव की शुरुआत हैं। जब युवा ऐसी तकनीकों पर काम करते हैं जो पर्यावरण के अनुकूल हों तो वह न केवल प्रदूषण मुक्त समाज की दिशा में एक कदम होता है, बल्कि ईंधन संकट और ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी गंभीर समस्याओं का समाधान भी बन सकता है।

निष्कर्ष

नील शाह की कहानी एक मिसाल है कैसे कम संसाधनों में भी बड़ी खोजें की जा सकती हैं। उनका जज़्बा, मेहनत और वैज्ञानिक सोच आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी। अगर ऐसे युवा आगे आते रहें तो निश्चित ही विज्ञान की दिशा भारत से तय होगी और दुनिया देखेगी कि बदलाव किसी लैब से नहीं, जुनून से आता है।

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