आज के इस दौर में जब हर कोई आधुनिक तकनीक और डिजिटल दुनिया की ओर भाग रहा है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पुराने तरीकों में नया सोचकर उसे अनोखे रूप में सामने लाते हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं सुधीर भावे सर जो वडोदरा, गुजरात में रहते हैं। वे एक पेशेवर इंजीनियर हैं, लेकिन उनका असली शौक है अलग-अलग डिजाइन की साइकिल बनाना। उनकी बनाई हुई दो साइकिलें बिल्कुल अनोखी हैं एक ऐसी साइकिल जो खड़े होकर चलानी पड़ती है और दूसरी बिना चेन की साइकिल, जिसे चलाना आसान नहीं बल्कि एक कला है।

1. खड़े होकर चलने वाली साइकिल
इस साइकिल में कोई सीट नहीं है मतलब इसको बैठकर नहीं बल्कि खड़े होकर चलाया जाता है। जैसे हम पैदल चलते हैं वैसे ही इस साइकिल को पैरों से धक्का देकर चलाना पड़ता है। इसमें एक स्लाइडर सिस्टम लगाया गया है।
यह साइकिल कैसे बनी?
सुधीर सर को सबसे पहले ऐसी साइकिल किसी को चलाते हुए दिखाई दी। फिर वे उस साइकिल के शोरूम गए और वहाँ से उन्हें इस तरह की साइकिल बनाने का आइडिया मिला। यह बात साल 2017 की है। फिर उन्होंने अपने दिमाग से एक ड्रॉइंग बनाई और वर्कशॉप में जाकर एक-एक पार्ट खुद बनाया।

उनकी पहली साइकिल 3 महीने में बनी लेकिन अब वे केवल 2 महीने में पूरी साइकिल बना लेते हैं।
कैसे चलती है यह साइकिल?
इसमें दो रोलर लगे हैं जो घूमते हैं। इसके बाद चेन घूमती है और इसी तरह पूरी साइकिल आगे बढ़ती है। हैंडल एडजस्टेबल है यानि आपकी हाइट के अनुसार उसे ऊपर-नीचे किया जा सकता है। इसमें दो टायर हैं – पीछे का टायर 16 इंच का और आगे का 12 इंच का है। पीछे एक पकड़ने का हिस्सा भी है ताकि बैलेंस करना आसान हो। इस साइकिल में रोटरी मैकेनिज्म का इस्तेमाल किया गया है और इसे चलाने के लिए पैरों को आगे-पीछे चलाना पड़ता है – जैसे आप वॉक करते हो।
2. बिना चैन वाली साइकिल
दूसरी साइकिल और भी खास है, क्योंकि इसमें चेन ही नहीं है।
इसकी खासियत
इसमें प्रे-व्हील डिज़ाइन है। इसमें दोनों व्हील (पहिया) घूमते हैं। कंट्रोल पीछे के व्हील से होता है। पैडलिंग सिस्टम पीछे के टायर में लगा है। ये साइकिल आसानी से कोई नहीं चला सकता क्योकि इसके लिए अच्छी प्रैक्टिस जरूरी है। इस साइकिल में जब टेढ़े व्हील चलते हैं तो उसके साथ पैरेलल व्हील भी चलता है।

चलाने का तरीका
साइकिल चलाने में सबसे जरूरी होता है सही हैंडल पोजीशन, सही खड़े होने की पोजीशन, और पैरों की मूवमेंट। जब ये तीनों सही होंगे और प्रैक्टिस की होगी, तब ही आप इस खास साइकिल को चला पाएंगे।
निष्कर्ष
सुधीर भावे सर ने दिखा दिया कि जब मन में कुछ नया करने की चाह हो तो इंसान कुछ भी बना सकता है। उनकी मेहनत, सोच और टेक्निकल नॉलेज ने दो ऐसी साइकिलें बना दीं जो आम साइकिलों से बिल्कुल अलग हैं। आज भी वे इन्हीं साइकिलों को खुद चलाते हैं और लोगों को दिखाते हैं कि इन्वेंशन का मतलब क्या होता है। इनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि शौक को अगर मेहनत से जोड़ा जाए, तो वह एक दिन कमाल का आविष्कार बन जाता है।
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