वाटर हार्वेस्टिंग का हाईटेक तरीका


जहां देश के अनेकों राज्य जल की कमी से जूझ रहे हैं, वहीं एक इंजीनियर भाई ने बेहतरीन तरीके से वाटर हार्वेस्टिंग कर जल-स्तर इतना घटा दिया की मात्र 20 फीट पर जल निकल रहा है। जल विकास रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1.4 बिलियन आबादी में से 35 मिलियन लोग जल की कमी से त्रस्त है। पानी की तलाश में लोग अपने निवास स्थान से विस्थापित होते जा रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक प्रत्येक व्यक्ति को पानी की खपत में 15% कमी करनी जरूरी हो जायेगी। राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों में जल की क़िल्लत अभी भी देखने को मिल रही है।

वाटर हार्वेस्टिंग का हाईटेक तरीका:
ऐसी गंभीर स्थिति में जल को संरक्षित करने के लिए विशेष उपाय करने आवश्यक हो जाते हैं, अन्यथा परिणाम विकट होंगे। इसी समस्या को देखते हुए इन भाई साहब ने अपने घर में ही कुछ स्थान कच्ची भूमि का छोड़ रखा है, जहां पर पूरे घर की छत का पानी पाइप के माध्यम से एक जगह इकट्ठा होकर इस गार्डन में आ जाता है। गार्डन की कच्ची भूमि में चूहों द्वारा बनाए हुए बिल भी हैं, जिनके माध्यम से पानी उन छिद्रों में रीस कर सीधे भूमि में जाता है।

वॉटर फिल्ट्रेशन सिस्टम:
बारिश द्वारा आये जल को शुद्ध करने के लिए विशेष तकनीक अपनाई जाती है। इसके लिए करीब 4 फीट गहरा और 3 फीट लंबा-चौड़ा गड्ढा बनाते हैं, जिसमें कोयला, रेत, उन, टूटी हुई ईंटें आदि की करीब 6-7 परत ऊपर-नीचे बिछाई जाती है, जिनसे जल होता हुआ नीचे भूमि में प्रवेश कर जाता है। अतः इस प्रक्रिया से एकदम शुद्ध जल धरती में प्रवेश करता है और उसी को हैंडपंप आदि की सहायता से बाहर निकाल लेते हैं।

धरती का जल सोखने का तरीका:
इस कच्ची भूमि में जगह-जगह नालियां बनाई जाती है, जिससे वाटर का फ्लो रुक कर चलें और वह अधिक से अधिक जमीन में नीचे तक जाएं। इसी के साथ गार्डन में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे भी लगा सकते हैं। इन्होंने बंबू के पेड़ भी लगाए हुए हैं, क्योंकि इनका मेंटेनेंस कम है तथा जल को भी बहुत कम मात्रा में सोखते हैं। यूं तो यह तकनीक वैदिक काल से चली आ रही है; परंतु वर्तमान की स्थिति को देखते हुए इसका प्रयोग अनिवार्य हो जाना चाहिए।

पर्यावरण का दुश्मन यूकेलिप्टिक:
जल की सबसे अधिक आपूर्ति करने वाले यूकेलिप्टिक के पेड़ को पर्यावरण का दुश्मन माना जाता है। यह वृक्ष अपने आसपास किसी और अन्य पेड़ को नहीं पनपने देता तथा वाटर लेवल को बहुत नीचे पहुंचा देता है। जब से यह सिद्ध हुआ है तब से पर्यावरणविद् इस पेड़ को लगाने की सलाह नहीं देते। इसलिए सफेदा के पेड़ दलदलीय भूमि में लगाने हेतु उपयुक्त है। पर्यावरण और जलवायु को बचाने हेतु सभी को ऐसी पहल करनी चाहिए। कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट पर अवश्य बताएं तथा ऐसी ही और जानकारी के लिए जुड़े रहे "द अमेजिंग भारत" के साथ। धन्यवाद॥जय हिंद॥
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