हाईटेक गुड और उससे अन्य प्रोडक्ट बनाने की फैक्ट्री

17 Sep 2024 | Manufacturing
हाईटेक गुड और उससे अन्य प्रोडक्ट बनाने की फैक्ट्री

दोस्तों गांव में गुड़ बनाने के कोल्हू तो आपने बहुत देखें होंगे, लेकिन यह गुड बनाने की एक ऐसी हाईटेक फैक्ट्री जो साइंस लैब जैसी दिखती है। जिसमें सभी कार्य बड़ी ही सफाई और सिस्टमैटिक तरीके से ऑटोमेटेकली होते हैं। पाइपों के माध्यम से एक टैंक से दूसरे टैंक में रस बड़ी ही सफाई और शुद्धता के साथ दौड़ता है, जो बिना किसी हयूमन टच के रस को गला-गला कर गुड बना देता है। आये जानते हैं इस पूरी हाईटेक प्रक्रिया को किस प्रकार बड़ी-बड़ी मशीनों द्वारा यह कार्य हो रहा है।

हाईटेक गुड और उससे अन्य प्रोडक्ट बनाने की फैक्ट्री_2645


गुड बनाने की हाईटेक प्रक्रिया:

सबसे पहले हाईटेक क्रशर में गन्नों को डाला जाता है, जिससे गन्नों का रस निकालकर एक टैंक में छन-छन कर इकट्ठा हो जाता है तथा दूसरी तरफ गन्ने की खोई या बैगेज जमा हो जाती है, जिसे सुखाकर बाद में ईंधन के रूप में प्रयोग करते हैं। अब इस प्राप्त रस का तीन स्टेज पर फिल्टर प्रोसेस होता है।

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इसमें पहली स्टेज में गन्ने के ऊपर लगी पत्तियां तथा रस के साथ आए अन्य मोटे पदार्थ का फिल्ट्रेशन हो जाता है। दूसरी स्टेज में गन्ने के साथ आने वाले छाग जैसे वैक्सेस का फिल्ट्रेशन होता है। गुड बनाने की प्रक्रिया में इन झाग का कोई प्रयोग नहीं होता अतः तीसरी स्टेज में शुद्ध जूस प्राप्त होता है। इन तीनों स्टेजों को इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि पहली स्टेज सबसे ऊपर, दूसरी नीचे तथा तीसरी सबसे नीचे एक निश्चित क्रम में स्थित है। इस प्रकार फिल्टर होकर फ्रेश रस नीचे की तरफ एक टंकी में इकट्ठा होता रहता है और झाग खुद ही अलग हो जाते हैं। 


रस को गर्म करने का तरीका:

रस को गर्म करने के लिए इनके पास तीन बड़े-बड़े पेन हैं, जो ग्रेविटी के अनुकूल एक-दूसरे से थोड़ा नीचे की तरफ स्थित होते हैं, जिस कारण रस तीसरी पेन से दूसरे तथा दूसरे से पहले पेन में स्वत: ही पहुंच जाता है। पहले पेन में भट्टी लगी होती है जहां रस को मुख्य रूप से गर्म किया जाता है।

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जैसे-जैसे रस गर्म होता है तो उसमें से विभिन्न प्रकार के वैक्सैस-झाग तथा मलाई के रूप में निकलने लगते हैं, जिन्हें बड़ी-सी छलनी के माध्यम से अलग किया जाता है। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक रस पूरी तरह से पक नहीं जाता।

कंबशन पोर्शन:

इस पोर्शन में भट्टी को चलाने के लिए पर्याप्त ईंधन का निस्तारण किया जाता है। जिसमें सुखी खोई को डालकर टेंपरेचर बढ़ाया जाता है। गन्ने से निकलने वाले बगास या खोई को पहले सूर्य की गर्मी था फिर एक विशेष पॉलीहाउस में ले जाकर अच्छे से सुखाया जाता है। 

गुड बनने का फाइनल प्रोसेस:

पहले पेन में रस को पूरी तरह से पक जाने के बाद गुड लिक्विड फॉर्म में फिल्टर होने के लिए एक अन्य पैन में आता है। जिसमें उसे घूमाने के लिए विशेष प्रकार का मैकेनिकल एजिटेटर लगा रहता है, जिससे गुड कूलिंग होकर सॉलिड फॉर्म में बन जाता है। इसके लिए दो लोग भी इस लिक्विड गुड को चलाने में लगे रहते हैं, ताकि गुड कॉर्नर में लगा ना रह जाए। इस प्रकार यह गुड पाउडर फॉर्म में प्राप्त हो जाता है। 

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गुड में किसी प्रकार का मॉइश्चर ना बचे इसलिए कैबिनेट ट्रे में कॉटन का कपड़ा बिछाकर,उसके ऊपर इस पाउडर रूपी गुड को फैलाकर ट्रॉली में रखा जाता है, जहां 3 घंटे में लगभग 100 केजी गुड ड्राइ हो जाता है। इस प्रकार गुड पूरी तरह से सूखने के बाद क्रिस्टलाइज फार्म में प्राप्त हो जाता है। जिसे पाउडर फॉर्म में लेने के लिए छलनी के द्वारा छाना जाता है। 


गुड से बनने वाले प्रोडक्ट:

इस प्राप्त गुड से इन्होंने विभिन्न प्रकार के अन्य प्रोडक्ट बनाए हैं, जिनमें मुख्य रूप से टर्मरिक जैगरी अर्थात् हल्दी वाला गुड, चोको जैक नाम का यह प्रोडक्ट ठंडे दूध में दो चम्मच डालकर घोलने पर कोल्ड कॉफी के रूप में तैयार हो जाता है। इसी प्रकार अन्य प्रोडक्ट में प्रीमिक्स है जिसमें गुड पाउडर, चाय-पत्ती, इलायची, अदरक आदि का मिश्रण है, यह एक प्रकार से नेस्कैफे या बॉर्नविटा की तरह प्रयोग किया जाता है। एक कप में एक चम्मच प्रीमिक्स पाउडर तथा उबलता हुआ दूध डाल दें तो सेकंडों में चाय बनाकर तैयार हो जाती है।

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