फूड फॉरेस्ट फार्मिंग से अदानी-अंबानी बनने का सफर


आज के समय में आपको किसान से बड़ा इंजीनियर कहीं नहीं मिलेगा, वह ऐसी-ऐसी चीज कर रहा है, जिसे देखकर आप चौंक जाएंगे। वह समय दूर नहीं जब कोई किसान अंबानी या अदानी होगा। आपने फूड फॉरेस्ट के बारे में जरूर सुना होगा। फूड फॉरेस्ट वह मॉडल है जिसमें 50 से ज्यादा फैसले एक ही खेत पर होती है। यदि एक दो फसल पैसा ना दें तो बाकी फसलें पैसा देकर उसकी पूर्ति कर देती है। इसका पूरा डिजाइन स्क्वायर और ट्रायंगल से बना हुआ है, जो की एक छोटे किसान के लिए बड़ा मुश्किल हो जाता है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात है कि 1 एकड़ के किसान ने आखिरी ये कैसे कर दिखाया। आज डिटेल में जानेंगे श्याम सिंह रोड जी से यह फूड फॉरेस्ट मॉडल क्या है और एक एकड़ से लाख नहीं करोड रुपए तक कमाई कैसे की जा सकती हैं।

खेती से अमीर कैसे बनेंगे?
आज के इस लेख में Hello Kisaan की टीम का मेन मोटिव सभी किसान भाइयों का सही मार्गदर्शन कर यह बताना है कि कम भूमि से भी किस प्रकार अधिक से अधिक धन कमाया जा सकता है और ऐसा क्या उगाये की साधारण किसान भी अमीर बन जाए, तो इसलिए जुड़े रहे लेख के आखिर तक और जाने फूड फॉरेस्ट के बारे में।
फूड फॉरेस्ट क्या है?
दरअसल फूड फॉरेस्ट एक ऐसा जंगल है जो प्राकृतिक रूप से कई प्रजातियां को एकीकृत करके फसलें उगता है। इसमें सभी पेड़-पौधे एक-दूसरे की ग्रोथ में मदद करते हैं। यह मनुष्य के लिए भोजन भी मुहैया कराता है साथ ही खाद्य वन में पेड़-पौधे फल और सब्जियां की वैरायटी भी उत्पादित होती है।

श्याम सिंह जी बचपन से ही खेती पर छोटे-छोटे प्रयोग करते आ रहे हैं, इसकी शुरुआत उन्होंने अपने दादाजी के बाग में अलग-अलग किस्म के पौधों की खेती एक साथ होते देखी तो इनके दिमाग में भी आया की क्यों ना जगह का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर अपने खेत में ही अधिक वैरायटी की फसलों को उगाया जाए।
पहले इन्होंने डेढ़ एकड़ में केवल आम की फसल उग रखी थी जिसमें एक समय में मात्र डेढ़ लाख की ही इनकम होती थी परंतु जब इन्होंने इस जगह पर फूड फॉरेस्ट डेवलप किया तो उससे कई गुना ज्यादा इनकम जनरेट होने लगी। जैसे आम, लीची, अनार आदि के पेड़ों को फल देने में अभी थोड़ा समय लगेगा, केवल केले की फसल होनी शुरू हुई है, जो अकेले ही पहले जितना मुनाफा तो दे चुकी है।
जैविक खाद का प्रयोग:
इस फूड फॉरेस्ट को जितना अच्छा नेचुरल रूप से चलाएंगे यह उतनी अच्छी उन्नति करता है। चलने को तो केमिकल-पेस्टिसाइड्स का प्रयोग भी कर सकते हैं; परंतु आज के समय में जैविक फलों तथा सब्जियों की अधिक डिमांड है और वह मार्केट में बिकते भी अच्छे रेट पर है।

जैविक और नेचुरल फार्मिंग में अंतर:
नेचुरल फार्मिंग में केवल नेचर अर्थात् प्रकृति पर निर्भर रहा जाता है, इसमें केवल गाय का मूत्र और गोबर से बना खाद ही इस्तेमाल करते है।
ऑर्गेनिक खेती महंगी पड़ती है, बाजार में जैविक खाद के रूप में वही पेस्टिसाइड्स और केमिकल्स आ रहे हैं। परंतु इनके प्रयोग से किसानों को बचाना चाहिए और नेचुरल फार्मिंग ही करनी चाहिए। क्योंकि कृषि में धन की बचत करना भी एक प्रकार की कमाई ही है।
1 एकड़ में विकसित फूड फॉरेस्ट:
सबसे पहले बड़े कैनोपी के पौधे अर्थात् लीची या आम जिनकी उम्र ज्यादा होती है, को 30×30 फीट की दूरी पर लगाने चाहिए। इस प्रकार एक एकड़ में करीब 40 पौधे आ जाते हैं। इसमें चार पौधों के बीच में एक पौधा सेंटर में होता है, जिससे पांचवें पौधे को भी अच्छा स्पेस मिल जाता है। अब इन आमों के पौधों के बीच में लीची के पेड़ लगा देते हैं, इस प्रकार लीची से लीची की दूरी भी 30 फिट होती है और चार लीची के पौधों के बीच में एक आम का पेड़ भी लगाया। इस तरह लीची और आम के बीच की दूरी 15 फिट हो गई। इस जगह में हम कम कैनोपी का पौधा जैसे अमरूद, आडू या मौसमी आदि लगा देते है। इनको भी बची 15 फीट दूरी के बीच चारों कोनों में बराबर दूरी पर लगा देते हैं। इस प्रकार 15×15 और उसके सेंटर में एक पेड़ का स्ट्रक्चर बन जाता है।

अब 15 फीट दूरी के बीच अर्थात् 7.5 फीट पर दूसरा पौधा लगा देते हैं। वह भी चारों कोनों पर तथा बीच में कम कैनोपी का दूसरा पौधा उगाया जाता है। श्याम जी ज्यामिति कला के शिक्षक भी रहे हैं, जिसका प्रयोग इन्होंने अपने खेत में बखूबी किया। इस प्रकार की संरचना से पौधों को उगाने पर वास्तव में अपने आप में एक बेहतरीन लेआउट बनकर आता है, जिससे खेत और देखने में सुंदर और अधिक पैदावार देता है। इस प्रकार एक एकड़ में करीब 1200 पौधे उगा देते हैं और उनके बीच में अन्य औषधीय और मसालेदार पौधे जैसे हल्दी, अदरक उगा लेते हैं। तथा जिस क्षेत्र में धूप भी आती हो वहां दलहन की खेती सफल रूप से की जाती है।
श्याम जी इस खेती को 2016 से अपग्रेड करते आ रहे हैं। इस तरह करीब 8 साल में उन्होंने इसका पूरा विज्ञान जानकर ज्यादा मुनाफा कमाने की तकनीक भी सीख ली, जिसे वह अन्य किसानों को भी देना चाहते हैं।
इस 1 एकड़ में क्या-क्या पौधे उगाए:
इस प्रश्न पर श्याम जी बताते हैं कि यह किसान को स्वयं डिसाइड करना होगा, कि उसके खेत की किस प्रकार की मिट्टी तथा जलवायु है। इस प्रकार मिट्टी तथा जलवायु के अनुकूल पौधों को उगाया जाए तो उससे अधिक पैदावार प्राप्त होगी। सेब हिमाचल का पौधा है, यदि उसे अन्य जलवायु के क्षेत्र में लगाया जाए तो वह उस क्वालिटी का पैदा हो ही नहीं सकता।

1 एकड़ में पौधे लगाने की लागत:
एक एकड़ में करीब 1000 से 1200 पौधे लगा सकते हैं। अब इसकी कास्टिंग इस बात पर निर्भर करती है कि हम कितना बड़ा, किस क्वालिटी का, किस नर्सरी से तथा किस वैरायटी का पौधा मंगवा कर लगा रहे हैं। यदि सामान्यतः अच्छी क्वालिटी के पौधे लें तो एक एकड़ में पौधे लगाने का खर्चा लगभग दो से ढाई लाख तक आ जाता है।

हरित क्रांति नहीं वह हरित भ्रांति थी:
सन् 1960 के दशक में हरित क्रांति आई थी जिसमें कहा जाता है कि तब के मुकाबले अब फसलों का उत्पादन अधिक होने लगा; परंतु श्याम जी कहते हैं वह हरित क्रांति नहीं, बल्कि हरित भ्रांति थी, वरना तब भी फसलों का बहुत अधिक उत्पादन होता था। पहले समय में गाय-बैल जैसे मवेशी को भी चने आदि मोटे अनाज खिलाए जाते थे, जबकि अब ऐसा नहीं है। सब चीजों को तोड़-मरोड़ कर यह सिद्ध कर दिया की केमिकल्स का प्रयोग पौधों के लिए जरूरी है; परंतु ऐसा नहीं है।

यह अपने खेत में मुख्यतः गाय के मूत्र में नीम की पत्तियों को सडाते है और बनें लिक्विड का पेड़-पौधों पर स्प्रे करते हैं, जिससे उन पर कीट पतंगे नहीं आते तथा पत्तियां भी स्वस्थ रहती है।
कीट दो प्रकार के होते हैं:
पहले शाकाहारी जो हमारे शत्रु कीट माने जाते हैं तथा दूसरे मांसाहारी कीट जो हमारे मित्र कीट माने जाते हैं। शाकाहारी कीट पत्तियों को खाते हैं। वहीं कुदरत के रहस्यमय सिद्धांत से की एक चीज दूसरे का भोजन है। इस नियम से मांसाहारी कीट शाकाहारी को खा जाता है; परंतु जब कुछ लोग केमिकल स्प्रे कर देते हैं तो दोनों कीट मर जाते हैं, जिससे मांसाहारी कीट की तीन पीढ़ियां खत्म हो जाती है और वह पौधे की अन्य कीट से रक्षा नहीं कर पाता। इस प्रकार तब केमिकल्स का प्रयोग पौधे के लिए मजबूरी बन जाता है।
हाइब्रिड फसलें:
हाइब्रिड फसलों ने प्राप्त फल की क्वालिटी एकदम क्षीण कर दी है। इससे क्वांटिटी तो बढ़ती है, किंतु क्वालिटी खत्म हो जाती है। अब हाइब्रिड गेहूं का एक बीज मार्केट में उपलब्ध है, जो छोटी हाइट का तथा बहुत ही जल्दी फल देने वाला होता है। इस प्रकार इस गेहूं में पर्याप्त सप्लीमेंट मौजूद नहीं रहते, जो खाने के लिए भी अच्छा नहीं है। इसलिए ऐसी हाइब्रिड फसलों को उगाने से बचना चाहिए।

फसल की छोटी पौध को उगाना चाहिए:
जितनी कच्ची पौध लगाई जाएगी, उसका उतना अच्छा विकास होगा। इसलिए ज्यादा दिनों या साइज के पड़े पौधों को नहीं उगाना चाहिए; बल्कि छोटी पौध को ही उसके निश्चित स्थान पर विधिवत उगा देना सही माना जाता है, क्योंकि पेड़ जमीन में जितना ऊपर होता है, उतना ही नीचे भी होता है।
फूड फॉरेस्ट का फायदा:
कृषि की इस पद्धति का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह किसान को कभी नुकसान नहीं होने देता क्योंकि बहुत सारी वैरायटी की फसल होने के कारण, यदि एक आधी फसल खराब या कम कीमत पर बिकी तो उसकी पूर्ति अन्य फसलें कर देती है, इसलिए इस पद्धति को एकदम सेफ और सुरक्षित माना जाता है।
फूड फॉरेस्ट में यदि बीजू पौधे तथा क्राफ्टेड पौधें दोनों तरह के हों तो अच्छी पैदावार होती है। बीजू पौधे फल देने में थोड़ा अधिक समय जरूर लेते हैं; परंतु उनकी पैदावार ज्यादा अच्छी होती है।

खेती में आने वाली चुनौतियां:
किसी भी कार्य को करने में मेहनत तो लगती है तथा इतने बड़े फॉर्म को चलाने के लिए हाथों द्वारा लेबर का कार्य बढ़ा रहता है। जैसे खेत पर उगने वाली अन्य खरपतवार या कोई पेड़ टूट गया, विकसित नहीं हुआ तो उसे पुनः लगाना आदि मेंटेनेंस चलते रहते हैं; परंतु श्याम जी कहते हैं कि फूड फॉरेस्ट फार्मिंग में यह सब चीजें बजाय दूसरी पद्धति के कम देखने को मिलती हैं, क्योंकि हम इस पद्धति में भूमि को खाली छोड़ते ही नहीं, ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करते हैं। यदि भूमि खाली हैं तो यह प्रकृति का नियम है की उस भूमि पर पृथ्वी खुद ही कुछ ना कुछ उग देगी, इसलिए पृथ्वी को मौका ही ना दें और उस पर दलहन या अन्य फसल लगा दें।

इस प्रकार इस कृषि फार्म पर 2-3 लेबर हमेशा लगी रहती है, जो पेड़ों की कटिंग, फल तोड़ने तथा उनको मेंटेन करने, सिंचाई करने आदि कार्य करती रहती है। परंतु यह देखने में जितना जटिल लग रहा है, उतना है नहीं; क्योंकि हमेशा कुछ ना कुछ कार्य करते रहने से कृषक कृषि से जुड़ा रहता है, जिससे वह स्वत: ही अधिक उत्पादन प्राप्त कर पाता है।
कमाने का तरीका:
श्याम जी अपने इस फार्म पर प्रोसेस कर अन्य आइटम्स में लीची, आडू और पुलम का स्क्वास तैयार कर मार्केट में बेच रहे हैं। वहीं इसी के साथ चार-पांच तरह के अचार तथा मीठी चटनी वगैहरा की पैकिंग कर भी बेची जाती है। जैसे इन्होने केले को डीप कर फ्रीज में रखा है, जिसका यह बाद में आइसक्रीम के रूप में उपयोग करेंगे। यदि अच्छा मुनाफा कमाना है तो प्रोडक्ट को डायरेक्ट न बचकर उसे पर थोड़ा प्रोसेस कर बेचा जाना चाहिए।
इस तरह की खेती करने के लिए किसान के पास एक या दो गाय होना आवश्यक है, क्योंकि गाय से ही जीवामृत जैसी चीजें तैयार की जाती है। यही नेचुरल फार्मिंग में खाद का कार्य करती है। इसके लिए ना तो बाजार से यूरिया लाना पड़ता ना डीएपी, इन सब चीजों की आवश्यकता यहीं से पूरी हो जाती है।
प्रोडक्ट्स बेचना है आसान:
दरअसल ऐसी कृषि करने वाले किसान मार्केट में बहुत ही जल्दी अपना विश्वास बनाकर फैमिली फार्मर बन जाते, क्योंकि आज के समय में कोई भी अशुद्ध केमिकल वाली चीज नहीं खाना चाहता। हर कोई शुद्ध और नेचुरल खाद्य पदार्थों का प्रयोग करना चाहता है। इसी तरह जब सोशल मीडिया या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से लोगों को ऐसी नेचुरल चीजों के बारे में पता चलता है, तो वह स्वयं ही इन जैसे किसानों से जुड़ते चले जाते हैं और इनके रेगुलर कस्टमर बन जाते हैं। इस प्रकार इन शुद्ध प्रोडक्ट की मार्केटिंग करने में कोई ज्यादा दिक्कत नहीं आती। यदि किसान ऐसे 10 परिवार भी पकड़ने चाहे की मैं आपको बिना जहर की नेचुरल फल-सब्जियां दूंगा तो बहुत सारे लोग जुड़ते चले जाएंगे। शुरू में दो-तीन साल तो इन्हें अपना विश्वास बनाने में दिक्कतें आई, लेकिन अब ऐसी स्थिति है कि इनके पास प्रोडक्ट की कमी पड जाती है और लोग डिमांड करते रहते हैं। इसी के साथ यह बासमती चावल तथा मणिपुर के ब्लैक राइस की खेती भी करते हैं। बंसी वैरायटी का देसी गेहूं भी अपने आप में गुणवत्ता वाला गेहूं है। दलहन में मूंग, मसूर, उड़द, अरहर, सरसों आदि उगाई जाती है।

नीलगाय जैसे आदि जानवरों से सुरक्षा:
इन जानवरों से फसल सुरक्षा की समस्या आमतौर पर देखने को मिलती है; परंतु इसमें इन जानवरों की कोई गलती नहीं है, क्योंकि वे जंगल में नहीं रहेंगे तो कहां रहेंगे? उनको खाने के लिए चारा चाहिए, यदि वह नहीं मिलेगा तो वह फसलों को ही तोड़-तोड़ कर खायेंगी। इसके लिए इन्होंने अपने खेत के चारों तरफ चारा के लिए ज्वार उगा रखी है, जो इनकी गायें-भैंस तथा अन्य जानवर वगैहरा के लिए भी है। ऐसे में नीलगाय चारा खाती है और चली जाती है, कोई नुकसान नहीं करती। बंदरों से सुरक्षा के लिए बाउंड्री पर कांटेदार कांदे, नींबू आदि के पेड़ लगा देने चाहिए।

अंबानी-अडानी कब बनेगा कोई किसान?
यदि कृषि को सही ढंग से टीम बनाकर मैनेजमेंट द्वारा किया जाए और उसे एक बिजनेस के नजरिए से देखा जाए तो वास्तव में इससे बड़ा कोई बिजनेस नहीं। इससे भी करोड़ों के टर्नओवर वाली कंपनी बनाई जा सकती है और ऐसा हो भी रहा है। श्याम जी के ही परिचित रामशरण वर्मा जी केले की बहुत बड़े स्तर पर खेती करते हैं। करोड़ों में उनका टर्नओवर है, यहां तक की उन्होंने अपने खेत में हेलीपैड भी बनाया हुआ है। हेलीकॉप्टर से कृषि की निगरानी करने कभी कभार आते रहते हैं, वरना कृषि की देखरेख उनकी टीम ही करती है।

प्राकृतिक खेती में मल्चिंग का महत्व:
प्राकृतिक खेती में मल्चिंग का मतलब पौधे की सामग्री जैसे पेत्ते, घास, टहनियां, फसल अवशेष, पुआल आदि से मिट्टी को पूरी तरह से ढकना प्राकृतिक मल्चिंग कही जाती है। प्राकृतिक खेती इसके बिना लगभग असंभव सी है, इसके बहुत महत्व है।
-यदि अच्छे से मल्चिंग हुई है तो खेत में खरपतवार होने की समस्या नहीं होती।
-सूक्ष्मजीव मल्चिंग के नीचे उपस्थित रहेंगे और पौधे को न्यूट्रिएंट्स उपलब्ध कराने में मदद करेंगे।
-खेत में हमेशा नमी बनी रहेगी।
-यह मल्चिंग का मटेरियल कुछ दिन बाद खाद उर्वरक के रूप में भी परिवर्तित हो जाता।
किसानों को मूल्य खुद तय करने का अधिकार हो:
क्योंकि वर्तमान बाजार में खेती को करने के बहुत तरीके उपलब्ध है। जिसमें एक किसान अच्छी लागत लगाकर नेचुरल फार्मिंग कर शुद्ध फल-सब्जी उग रहा है, वहीं दूसरा हाइब्रिड केमिकल्स का प्रयोग कर कम समय तथा अधिक मात्रा में घटिया क्वालिटी का उत्पादन कर रहा है। तब दोनों का मूल्य एक कैसे हो सकता है? इसलिए किसान को अपनी लागत, मेहनत और बचत के अनुसार अपना मूल्य स्वयं निर्धारित करने का अधिकार होना चाहिए, तभी खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता सुधर सकती है। वरना हर कोई अधिक कमाने के चक्कर में घटिया पदार्थ का ही उत्पादन करेगा और मनुष्य नई-नई बीमारियों की चपेट में आते रहेंगे।
दोस्तों आज हमने जाना श्याम सिंह जी से उनके फूड फॉरेस्ट फार्मिंग के अनुभव के बारे में। यदि कोई डाउट या प्रश्न हो तो आप कमेंट कर पूछ या बता सकते हैं। ऐसे ही अन्य जानकारी के लिए जुड़े रहे "Hello Kisaan" के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद, जय किसान॥
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