भारत का ऐसा गांव जहाँ कोई भी नहीं बेच सकता दूध

22 Apr 2025 | NA
भारत का ऐसा गांव जहाँ कोई भी नहीं बेच सकता दूध

जब दुनिया तेजी से मुनाफे के पीछे भाग रही है, जहां रिश्ते-नाते भी अक्सर पैसों की तराजू पर तौले जा रहे हैं ऐसे में एक गांव ऐसा भी है जो आज भी अपने संस्कारों और परंपराओं को पैसों से ऊपर मानता है। हम बात कर रहे हैं राजस्थान के नागौर जिले में बसे एक अनोखे गांव कुसमा मालीपुरा की जहां दूध बिकता नहीं, बल्कि श्रद्धा से बांटा जाता है।

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जहां परंपरा पैसा नहीं, सम्मान है

आज के समय में जब दूध को ‘सफेद सोना’ कहा जाता है और लोग इसके व्यापार से करोड़ों कमा रहे हैं तब कुसमा मालीपुरा गांव के लोग इस अमूल्य दूध को बेचने का पाप मानते हैं। यहां हर दिन लगभग 300 लीटर दूध तैयार होता है। इतनी मात्रा में दूध को किसी भी बाजार में बेचकर एक अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है लेकिन इस गांव में इसे बेचना वर्जित है।

यहां की सांखला माली जाति के लोगों का मानना है कि “दूध बेचना बेटे को बेचने जैसा है”। यह सिर्फ एक कहावत नहीं, बल्कि जीवंत परंपरा है जिसे आज भी हर घर निभा रहा है। गांव में जितना दूध होता है उसे दही और फिर छाछ में बदला जाता है और फिर मुफ्त में जरूरतमंदों में बांट दिया जाता है।

भगवान राम से जुड़ी अनोखी आस्था

इस गांव की परंपरा की जड़ें धार्मिक मान्यताओं में भी गहराई से जुड़ी हैं। मान्यता है कि इस गांव की स्थापना भगवान राम के पुत्र कुश के वंशजों ने की थी इसीलिए इसका नाम पड़ा कुसमा। गांव के लोग आज भी अपने पूर्वजों के बताए संस्कारों को मानते हैं। दूध को बेचने से परहेज करना, उनके लिए आस्था, सम्मान और परंपरा का विषय है। यह गांव हमें सिखाता है कि हर चीज़ का व्यापार नहीं होना चाहिए। कुछ चीज़ें बांटने के लिए होती हैं – जैसे ममता, संस्कार, और दूध।

परंपरा से जुड़ी सामाजिक भावना

यह सिर्फ एक धार्मिक भावना नहीं, बल्कि सामाजिक सौहार्द का अद्भुत उदाहरण भी है। दूध को बेचना मना है लेकिन छाछ को बांटना पुण्य समझा जाता है। इससे गांव में आपसी भाईचारा बना रहता है। कोई भी भूखा नहीं रहता, और जरूरतमंद को भी बिना शर्मिंदगी के छाछ मिल जाती है।

जब दुनिया सीखा रही है व्यापार, यहां सिखाई जाती है सेवा

कुसमा मालीपुरा जैसे गांव आज की नफरत और स्वार्थ से भरी दुनिया में एक प्रेरणास्रोत हैं। यह गांव हमें सिखाता है कि हर चीज पैसों से नहीं खरीदी जा सकती। कुछ बातें दिल से आती हैं और परंपरा बन जाती हैं। इन परंपराओं का मोल करोड़ों में नहीं, बल्कि संस्कारों में नापा जाता है।

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आज की दुनिया के लिए एक मिसाल

जहां एक ओर बड़े शहरों में दूध की मिलावट, मुनाफा और धोखाधड़ी आम बात हो गई है वहीं यह गांव जैसे स्थान हमें याद दिलाते हैं कि भारत की असली आत्मा अभी ज़िंदा है। यहां की जीवनशैली सादगी भरी है लेकिन सोच गहरी और मूल्यवान है।

जहां लोग पैसों के पीछे रिश्ते भूल जाते हैं, वहां एक गांव ऐसा भी है जो दूध को बेटे जैसा समझता है। यह परंपरा सिर्फ एक धार्मिक विश्वास नहीं, बल्कि एक संस्कृति की आत्मा है – एक ऐसा एहसास जो बताता है कि भारत आज भी परंपराओं से जीवित है सांस ले रहा है और दुनिया को इंसानियत का असली मतलब सिखा रहा है।

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