जलवायु परिवर्तन और उसका खेती पर प्रभाव

29 Aug 2025 | NA
जलवायु परिवर्तन और उसका खेती पर प्रभाव

आज पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की गंभीर चुनौती का सामना कर रही है। इसका असर केवल बर्फबारी या गर्मी तक सीमित नहीं है, बल्कि खेती-किसानी पर इसका गहरा प्रभाव पड़ रहा है। फसलें समय पर नहीं हो रहीं, कीट और बीमारियाँ बढ़ रही हैं, और कभी सूखा तो कभी बाढ़ जैसी आपदाएं किसानों की मेहनत पर पानी फेर रही हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि किसान जलवायु परिवर्तन को समझें और उससे निपटने के उपाय अपनाएं।

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जलवायु परिवर्तन का खेती पर प्रभाव

1. अनिश्चित मौसम: पहले जहां बारिश, ठंड और गर्मी के मौसम का एक तय समय होता था, अब उसमें अनियमितता आ गई है। इससे बुवाई और कटाई के समय में गड़बड़ी हो रही है।

2. फसल उत्पादन में गिरावट: अधिक तापमान, सूखा, अधिक बारिश और तूफान जैसी स्थितियों से फसलों की उपज पर असर पड़ता है। धान, गेहूं, मक्का और दलहन जैसी फसलें सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही हैं।

3. पानी की कमी: ग्लेशियरों के पिघलने और बारिश के पैटर्न में बदलाव के कारण नदियों में जलस्तर घट रहा है। इससे सिंचाई में कठिनाई बढ़ती है।

4. कीट और रोगों का बढ़ना: गर्म तापमान में कीट और फसल रोग तेजी से फैलते हैं, जिससे किसानों को रासायनिक दवाओं पर ज्यादा निर्भर होना पड़ता है।

5. मिट्टी की गुणवत्ता पर असर: अत्यधिक वर्षा या सूखे की वजह से मिट्टी की उर्वरता कम हो रही है, जिससे फसलें कमजोर हो रही हैं।

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किसान कैसे करें जलवायु परिवर्तन का सामना?

अब सवाल यह है कि किसान इन चुनौतियों से कैसे निपटें। यहां कुछ समाधान दिए जा रहे हैं जो व्यवहारिक हैं और कई किसानों ने इन्हें अपनाकर सफलता पाई है।

1. फसल विविधता (Crop Diversification)

एक ही फसल पर निर्भर न रहकर किसान को अलग-अलग फसलों की खेती करनी चाहिए। जैसे – दलहन, तिलहन, मोटे अनाज, फल और सब्जियों का संयोजन। यह रणनीति जोखिम को कम करती है और आय के कई स्रोत प्रदान करती है।

2. जल संरक्षण तकनीक

ड्रिप इरिगेशन, स्प्रिंकलर सिस्टम जैसे आधुनिक सिंचाई तरीकों से पानी की बचत की जा सकती है। वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) की तकनीकों को अपनाना चाहिए।

3. मौसम की जानकारी का उपयोग

किसान मोबाइल ऐप्स, टोल फ्री हेल्पलाइन या स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्रों से मौसम की सटीक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। समय पर जानकारी से बुवाई, सिंचाई, और कीटनाशक छिड़काव की योजना बनाई जा सकती है।

4. जैविक खेती और प्राकृतिक खेती

रासायनिक खादों की जगह जैविक खाद जैसे गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट और नीम आधारित कीटनाशकों का उपयोग मिट्टी की सेहत को बेहतर बनाता है। ज़ीरो बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) जैसी पद्धतियाँ भी जलवायु अनुकूल होती हैं।

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5. कृषि बीमा और सरकारी योजनाएं

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर किसान प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम से अपने को सुरक्षित कर सकते हैं। जलवायु अनुकूल बीजों और संसाधनों पर मिलने वाली सब्सिडी का भी उपयोग करना चाहिए।

6. पेड़-पौधों का महत्व

खेत की मेड़ पर फलदार और छायादार पेड़ लगाने से सूक्ष्म जलवायु संतुलन बनता है और मृदा क्षरण रुकता है। एक एकड़ में 30–50 पेड़ लगाकर किसान जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।


निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन अब एक वास्तविकता है, और खेती पर इसका प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। लेकिन यह भी सच है कि हमारे किसान यदि सही तकनीक, ज्ञान और योजनाओं को अपनाएं, तो वे इन चुनौतियों को अवसर में बदल सकते हैं। सामूहिक प्रयास, वैज्ञानिक सोच और परंपरागत ज्ञान का संतुलित उपयोग ही भविष्य की सुरक्षित खेती की कुंजी है।

"प्रकृति से तालमेल बैठाकर ही खेती को टिकाऊ और लाभकारी बनाया जा सकता है।" ऐसी ही आसान और काम की जानकारी के लिए जुड़े रहिए Hello Kisaan के साथ। और अपकाये जानकारी कैसी लगी हमे कमेंट कर के जरूर बताइये  ।। जय हिंदी! जय भारत ।।

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