पराली को जलाएं नहीं – बनाएं इससे उर्वरक और आय


हर साल अक्टूबर-नवंबर के महीने में जब धान की कटाई होती है, तो उत्तर भारत के कई इलाकों में एक पुरानी और गंभीर समस्या सामने आती है पराली जलाना। किसान के पास समय की कमी होती है, अगली फसल की जल्दी होती है, और मशीनें सब कुछ काटकर पराली छोड़ जाती हैं। ऐसे में किसान सोचता है कि इसका सबसे आसान तरीका है आग लगाना। लेकिन यही आसान रास्ता हमें बहुत महंगा पड़ता है मिट्टी की सेहत खराब होती है, हवा जहरीली बनती है, और कानून भी पीछे लग जाता है। क्या कभी आपने सोचा है कि जिस पराली को आप खेत से हटाने के लिए जलाते हैं, वही पराली आपके खेत की ताकत भी बन सकती है और आमदनी का जरिया भी?
आज इस लेख में हम बात करेंगे कि पराली को जलाने के बजाय उससे कैसे उर्वरक (खाद) बनाएं, और कैसे इससे अच्छी कमाई भी हो सकती है।

पराली जलाने के नुकसान
1. मिट्टी का नुकसान: आग लगने से खेत की ऊपरी परत (Top Soil) बर्बाद हो जाती है, जिसमें लाखों सूक्ष्म जीव होते हैं जो फसल के लिए जरूरी होते हैं।
2. फसल उत्पादन पर असर: मिट्टी की ताकत कम होने से अगली फसल की पैदावार पर सीधा असर पड़ता है।
3. प्रदूषण और बीमारी: पराली जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर जैसी गैसें निकलती हैं। इससे सांस की बीमारी, आंखों में जलन और फेफड़ों की समस्या बढ़ती है।
4. कानूनी परेशानी: कई राज्यों में पराली जलाने पर जुर्माना और कानूनी कार्रवाई होती है। खेती की सब्सिडी भी रोकी जा सकती है।
पराली – खेत का कचरा नहीं, खेत की खाद है
पराली में कार्बन, फाइबर और प्राकृतिक तत्व मौजूद होते हैं। अगर इसे वैज्ञानिक तरीके से प्रयोग में लाया जाए, तो यह जैविक खाद (Organic Fertilizer) का एक बेहतरीन स्रोत है।
पराली से खाद कैसे बनाएं – आसान तरीके
1. बायो-कम्पोस्ट पद्धति
खेत के किनारे 6×4 फीट का गड्ढा खोदें। उसमें पराली, गोबर, घरेलू जैविक कचरा और कुछ मिट्टी की परत डालें। हर 5-7 दिन में उसे उलट-पलट करते रहें। 45–60 दिन में बढ़िया जैविक खाद तैयार हो जाती है। यह खाद खेत में डालने पर मिट्टी को नमी देती है, जीवाणुओं की संख्या बढ़ाती है और उत्पादन को बेहतर करती है।
2. PUSA बायोडीकंपोजर से पराली गलाना
इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट (IARI) ने PUSA बायोडीकंपोजर नामक एक घोल विकसित किया है। इसे पराली पर छिड़क दिया जाता है। पराली 20-25 दिनों में खुद गलकर मिट्टी में मिल जाती है। यह तरीका दिल्ली, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी लोकप्रिय हो रहा है।
3. वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद)
पराली के छोटे टुकड़े करके, उसमें गाय का गोबर मिलाकर वर्मी बेड में डाला जाता है। उसमें केंचुए छोड़े जाते हैं जो धीरे-धीरे पराली को गला कर पौष्टिक खाद में बदल देते हैं। यह खाद बाजार में 5-10 रुपये प्रति किलो तक बिकती है।

पराली से कमाई के रास्ते – सीधा फायदा किसान को
1. खुद की खाद बनाकर बेचें : जो किसान खुद खाद बना सकते हैं, वे अपने खेत में उसका उपयोग करें और अतिरिक्त खाद को स्थानीय मंडियों, नर्सरियों या जैविक उत्पाद बेचने वालों को बेच सकते हैं।
2. CBG प्लांट को पराली दें : अब भारत में कई जगह CBG (Compressed Bio-Gas) प्लांट खुल चुके हैं जो पराली और गोबर को ऊर्जा में बदलते हैं। किसान अपनी पराली इन्हें बेच सकते हैं और प्रति क्विंटल 150–300 रुपये तक की आमदनी कर सकते हैं।
3. बायो-पेलेट्स बनाना : पराली को सुखाकर मशीनों द्वारा पेलेट्स बनाए जाते हैं जो इंडस्ट्रियल बॉयलर, पावर प्लांट और रसोई ईंधन के रूप में उपयोग किए जाते हैं।
4. खेती की लागत घटाकर मुनाफा बढ़ाएं : बाहर से 1000-1200 रुपये की यूरिया/डीएपी खाद खरीदने की बजाय, यदि वही ताकतवर खाद पराली से बने तो लागत घटेगी और मुनाफा बढ़ेगा।
सफल किसानों की कहानियाँ
- राजबीर सिंह, करनाल (हरियाणा): “पहले हर साल पराली जलाते थे। अब पुसा बायोडीकंपोजर से गलाते हैं। मिट्टी मुलायम हो गई है और गेहूं की पैदावार भी बढ़ी है।”
- रामनिवास, सीकर (राजस्थान): “हमने गांव में सामूहिक वर्मी कम्पोस्ट यूनिट बनाई। अब हर महीने ₹20,000 की खाद मंडी में बिक जाती है।”
सरकार की मदद और योजनाएं
सब्सिडी पर मशीनें जैसे Happy Seeder, Super Straw Management System उपलब्ध हैं। कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और कृषि विभाग समय-समय पर प्रशिक्षण शिविर आयोजित करते हैं। बायोडीकंपोजर मुफ्त या कम कीमत पर उपलब्ध कराया जा रहा है।

गांव स्तर पर सामूहिक समाधान
एक गांव, एक कंपोस्ट यूनिट का मॉडल अपनाया जा सकता है। FPOs या किसान समूह पराली एकत्र करके खाद निर्माण और बिक्री कर सकते हैं। महिला समूह (SHGs) खाद की पैकिंग और मार्केटिंग में मदद कर सकते हैं।
पराली को समझें, अपनाएं और कमाएं
आज खेती को बचाने का समय है, और इसका रास्ता हमारी सोच से निकलता है। पराली को जलाना बीते जमाने की बात हो गई है। अब ज़रूरत है उसे खाद, ऊर्जा और आय के रूप में देखने की। पराली को आग का नहीं, अवसर का रूप दें। उससे न केवल खेत को ताकत दें, बल्कि परिवार को आमदनी भी। अगर हर किसान भाई इस दिशा में कदम बढ़ाए, तो ना केवल उसका खेत बचेगा, बल्कि हवा, पानी और अगली पीढ़ी का स्वास्थ्य भी। ऐसी अमेजिंग जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ और आपको ये जानकारी कैसी लगी हमे कमेंट करके जरूर बताइये ।। जय हिन्द जय भारत ।।
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