इंजीनियरिंग कर कृषि की कमान संभाल रहे पढ़े-लिखे युवा


आज के आधुनिक युग में, इंजीनियरिंग पढ़ाई करने वाले युवाओं की एक नई पीढ़ी ने खेती को व्यावसायिक रूप से शुरू किया है। यह परिवर्तन न केवल कृषि के पारंपरिक तरीके को चुनौती दे रहा है, बल्कि इसे एक नई दिशा भी दे रहा है। पढ़े-लिखे इंजीनियर अपने तकनीकी कौशल को कृषि में लागू कर रहे हैं, जिससे न केवल उत्पादकता बढ़ रही है, बल्कि कृषि व्यवसाय भी अधिक स्थायी और लाभदायक बन रहा है। इसे फैमिली फार्मिंग के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें अच्छी शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे न सिर्फ नौकरियों पर आश्रित है, बल्कि वे उच्च तकनीकी खेती करके भी अच्छा पैसा कमा रहे हैं। इस प्रकार एक मैकेनिकल इंजीनियर प्रमोद नैनेश्वरभोडके जी भी अच्छे पैकेज वाली नौकरी छोड़कर कृषि कर रहे हैं। आये जानते हैं उन्होंने किस प्रकार कृषि को व्यवसायिक मोड़ दिया।
आखिर इंजीनियर लोग कृषि करने में क्यों सफल हो रहे हैं?

दरअसल इंजीनियरों के पास डेटा एनालिटिक्स और सांख्यिकी का गहरा ज्ञान होता है। वे कृषि में फसलों की पैदावार, मिट्टी की गुणवत्ता और मौसम की भविष्यवाणियों का विश्लेषण करने के लिए डेटा का उपयोग कर सकते हैं। उदाहरण के लिए प्रमोद जी ने अपने ज्ञान का उपयोग करके यह समझा कि किस प्रकार की फसल किस मिट्टी में बेहतर उगती है और कब बोई जानी चाहिए। इसी के साथ उन्होंने उन उपकरणों को भी बहुत कम खर्च पर इजात किया जो बाजार में तीन से चार लाख रुपए के मिलते हैं। जैसे इन्होंने पावर टिलर को अपनी इंजीनियरिंग के जुगाड़ से कम लागत में बनाया। उसी के साथ सिंचाई करने हेतु ट्यूबवेल चलाने के लिए टाइमर का इस्तेमाल किया, जिससे ट्यूबवेल को ऑटोमेटेकली ऑन-ऑफ कर सकते हैं। इस प्रक्रिया से कम लेबर द्वारा भी कृषि को सुचारू रूप से संचालित किया जाता है।
स्मार्ट तरीके से होती है खेती:
इंजीनियर स्मार्ट फार्मिंग तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जैसे कि IoT (Internet of Things) और एग्रीटेक उपकरण। ये तकनीकें किसानों को वास्तविक समय में फसल की स्थिति और मिट्टी की नमी की जानकारी प्रदान करती हैं, जिससे उन्हें सही समय पर सिंचाई और उर्वरक का उपयोग करने में मदद मिलती है। इससे फसलों की पैदावार बढ़ती है और संसाधनों की बर्बादी कम होती है।

वर्टिकल पैटर्न के साथ कंट्रोल फार्मिंग:
प्रमोद जी अपने पिता के साथ कृषि करते हैं उनके पास कम जगह और अधिक डिमांड होने के कारण उन्होंने अपने अन्य इंजीनियर दोस्तों के साथ मिलकर वर्टिकल फार्मिंग शुरू की जिसमें अलग पैटर्न बनाकर एक सतह के ऊपर दूसरी सतह बनाई और बड़े-बड़े गमले आदि में सब्जियां उगाकार खेती की। इसके लिए इन्होंने पोली हाउस का भी निर्माण किया। ये इसे पॉलीहाउस ना कह कर कंट्रोल्ड फार्मिंग कहते हैं, क्योंकि इसके माध्यम से यह मौसम को कंट्रोल कर पूर्णतया जैविक रूप में सब्जियों का उत्पादन करते हैं।

उनके फार्म पर भी लोग सब्जियां खरीदने और उनके द्वारा किए गए इस अद्भुत मॉडल का विश्लेषण करने आते हैं। इन्होंने अपने इस एक एकड़ के फॉर्म में लगभग सभी प्रकार की मौसमी सब्जियों का उत्पादन किया हुआ है।
कृषि में ड्रोन का प्रयोग:
कृषि में ड्रोन का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। इंजीनियर अपने तकनीकी कौशल का उपयोग करके ड्रोन से फसलों की निगरानी कर सकते हैं। ड्रोन का उपयोग करके वे खेतों की तस्वीरें ले सकते हैं, जिससे उन्हें फसलों के स्वास्थ्य का मूल्यांकन करने में मदद मिलती है। इससे समस्याओं का जल्दी पता चलता है और समाधान किया जा सकता है। इसी के साथ सब्जियों में विभिन्न फर्टिलाइजरों का छिड़काव भी ड्रोन के माध्यम से ही किया जाता है।
इंजीनियर कृषक इसलिए होते हैं सफल:
यदि कोई इंजीनियरिंग का छात्र मेहनत, जज्बे और जुनून के साथ कृषि की शुरुआत करता है, तो वह निश्चित रूप से सफल ही होता है, क्योंकि उसने पढ़ाई के दौरान, परियोजना मैनेजमेंट का कौशल विकसित किया है। यह कौशल कृषि में भी महत्वपूर्ण है। एक इंजीनियर खेतों के विभिन्न कार्यों को प्रभावी ढंग से संचालित कर सकता है, जैसे कि बुवाई, सिंचाई, और कटाई। यह उन्हें समय और संसाधनों का सही उपयोग करने में मदद करता है। इसी के साथ वह कृषि कार्य में वित्तीय प्रबंधन के महत्वपूर्ण पहलूओं जैसे-वित्तीय योजना बनाने, लागत विश्लेषण करने, और लाभ-हानि का अनुमान लगाने में एक्सपर्ट होते हैं। इससे वे अपने कृषि व्यवसाय को अधिक लाभदायक बना सकते हैं।

नई तकनीकों का विकास और जैविक कृषि का उत्पादन:
पढ़े-लिखे इंजीनियर नई कृषि तकनीकों पर अनुसंधान कर रहे हैं। वे अधिक पैदावार देने वाली फसलों का विकास कर रहे हैं, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना कर सकती हैं। इस दिशा में उनका काम कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

इंजीनियर जैविक खेती के तरीकों को विकसित करने में भी सक्रिय हैं। वे विभिन्न जैविक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग की जांच कर रहे हैं, जिससे न केवल उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार होता है, बल्कि पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसी के साथ यह हाइड्रोपोनिक खेती भी करते हैं, जिसे एक पढ़ा लिखा और टेक्निकल कृषक ही सुचारू रूप से संचालित कर सकता है। अतः अब कृषि का रूप बदल रहा, इसमें पढ़े-लिखे लोग विश्लेषण पर अधिक उत्पादकता और लाभ वाली फसले उग रहे हैं।
अन्य लोगों को भी देते हैं प्रशिक्षण और प्रेरणा:
ये पढ़े-लिखे इंजीनियर अपनी तकनीकी कौशल को अन्य स्थानीय तथा दूर-दूर से आए लोगों के कृषि विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वे प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते हैं तथा अन्य किसानों को नई तकनीकों और विधियों के बारे में बताते हैं और एक छोटी-सी धनराशि के साथ 3 दिन तक प्रशिक्षण देते हैं एवं अपने कंट्रोल फार्मिंग फार्म का भ्रमण भी कराते हैं। इससे न केवल किसानों की आय में सुधार होता है, बल्कि समग्र कृषि उत्पादकता भी बढ़ती है।

चुनौती और समाधान:
हालांकि पढ़े-लिखे इंजीनियरों के लिए कृषि में सफलता के कई रास्ते हैं, लेकिन कुछ चुनौतियाँ भी हैं। जैसे कृषि क्षेत्र में कई किसान पारंपरिक तरीकों को अपनाने के लिए अनिच्छुक होते हैं। इंजीनियरों को इस चुनौती का सामना करना पड़ता है और उन्हें किसानों को नई तकनीकों के लाभ के बारे में शिक्षित करना होता है। कृषि में नई तकनीकों को अपनाने के लिए शुरू में खुद का निवेश करने की आवश्यकता होती है। इसी के साथ इंजीनियरों को सरकारी योजनाओं और अनुदानों का लाभ भी उठाना आना चाहिए।
पढ़े-लिखे इंजीनियरों का खेती में प्रवेश कृषि के लिए एक सकारात्मक संकेत है। उनका तकनीकी ज्ञान, और अनुसंधान का दृष्टिकोण न केवल कृषि की उत्पादकता को बढ़ा रहा है, बल्कि इसे एक स्थायी और लाभदायक व्यवसाय भी बना रहा है। इंजीनियरों के प्रयासों से, हम देख सकते हैं कि कैसे कृषि क्षेत्र आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है और यह समाज के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। इस तरह, इंजीनियरिंग का ज्ञान और कौशल खेती में नवाचार का एक नया युग लेकर आ रहा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भविष्य की खेती का रास्ता पढ़े-लिखे इंजीनियरों के हाथों में है।

यदि कोई किसान भाई इनके पोली हाउस या कंट्रोल्ड फार्मिंग फॉर्म का भ्रमण करना चाहे अथवा तीन दिन की ट्रेनिंग प्राप्त करना चाहे तो वह नैनेश्वर वोडके जी के नम्बर 9422005569 पर संपर्क कर सकता है। इन्होंने जब इस पद्धति के द्वारा खेती की शुरुआत की तो उन्होंने 10 लाख रुपए का लोन लेकर पोली-हाउस लगाया तथा खेती की, जिसे इन्होंने मात्र 13 से 14 महीने में चुका दिया। जिस कारण उनकी कई प्रसिद्ध टीवी चैनलों पर भी खूब वाह-वाही हुई। दोस्तों कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट कर अवश्य बताएं तथा ऐसे ही ज्ञानवर्धक लेखों के लिए जुड़े रहे "Hello Kisaan" के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद, जय किसान॥
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