चीन में चिपकली, मेंढ़क और झींगुर की खेती


आपने आज तक खेती में गेहूं, चावल, मक्का, सब्जियां या फूलों की बात तो सुनी होगी, लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि कोई देश चिपकली, मेंढ़क और झींगुर की भी खेती कर सकता है?
जी हाँ, चीन में यह कल्पना नहीं, हकीकत बन चुकी है। और यह कोई मज़ाक नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक सोच, प्राकृतिक पोषण और पर्यावरण संतुलन की ओर उठाया गया बेहद गंभीर कदम है।
चलिए, इन तीनों अजीब लगने वाली लेकिन भविष्य के लिए बेहद ज़रूरी होती जा रही खेती विधाओं पर बारी-बारी से नज़र डालते हैं:

1. झींगुर की खेती (Cricket Farming)
क्या है इसकी खासियत?
झींगुर (क्रिकेट) में 60% से ज़्यादा प्रोटीन होता है, जो कि चिकन, अंडे या दालों से कहीं ज़्यादा है। इसमें ओमेगा-3, आयरन, विटामिन B12, और फाइबर भी होता है। झींगुर बहुत ही कम जगह, कम चारे और पानी में पाला जा सकता है, जिससे यह जलवायु परिवर्तन के दौर में सस्टेनेबल खेती का आदर्श बनता जा रहा है।
खेत कैसे होते हैं?
चीन में झींगुरों को एयर-कंडीशन्ड शेड्स में ट्रे या डिब्बों में पाला जाता है। उन्हें गेहूं का आटा, सब्ज़ियों के छिलके और सूखे पत्ते जैसे जैविक वेस्ट खिलाए जाते हैं। लगभग 35-40 दिनों में ये कटाई लायक हो जाते हैं। इनसे प्रोटीन पाउडर बनता है जो एनर्जी बार, बिस्किट, और यहां तक कि पिज्जा टॉपिंग में भी मिलाया जाता है।
बाज़ार की स्थिति:
चीन में झींगुर आधारित प्रोडक्ट्स की सालाना बिक्री अरबों डॉलर तक पहुंच रही है। इसे ‘Alternate Protein Source’ के रूप में FAO (संयुक्त राष्ट्र खाद्य संगठन) भी बढ़ावा दे रहा है।

2. मेंढ़क की खेती (Frog Farming)
मेंढ़क क्यों पालते हैं?
चीन में विशेषकर Bullfrog नस्ल का मीट बहुत पसंद किया जाता है। इसे हेल्दी और उर्जावान आहार माना जाता है। मेंढ़क खेतों में छोड़े जाने पर कीटनाशकों का विकल्प बनते हैं क्योंकि ये हानिकारक कीटों को खाते हैं। कुछ पारंपरिक चीनी दवाओं में मेंढ़क की त्वचा और मांस का भी उपयोग होता है।
खेती का तरीका:
कृत्रिम तालाब या वाटर टैंक बनाए जाते हैं जिनमें साफ़ पानी, कंट्रोल तापमान और छांव का ध्यान रखा जाता है। नर-मादा मेंढ़कों को जोड़ी बनाकर पाला जाता है।उनके अंडों से टेडपोल और फिर एडल्ट मेंढ़क तैयार किए जाते हैं।लगभग 2.5 से 3 महीने में एक मेंढ़क बाज़ार में बेचने लायक हो जाता है।
मार्केट:
चीन हर साल लाखों टन Frog Meat का उत्पादन करता है, जिसे दक्षिण कोरिया, जापान और यूरोपीय देशों में भी एक्सपोर्ट किया जाता है।

3. चिपकली की खेती (Gecko Farming)
Tokay Gecko: एक अनमोल चिपकली
चीन में Tokay Gecko को पारंपरिक दवाओं में कैंसर, अस्थमा और यौन रोगों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। इसकी त्वचा, रक्त और मांस से कई हर्बल दवाएं, पाउडर, और त्वचा संबंधी क्रीम बनाई जाती हैं। एक बड़ी Tokay चिपकली की कीमत चीन और दक्षिण एशिया में ₹1 लाख से भी अधिक हो सकती है।
कैसे होती है खेती?
इन चिपकलियों को कंट्रोल टैंकों में पाला जाता है। इन्हें जीवित कीड़े जैसे झींगुर,कॉकरोच आदि खिलाए जाते हैं। चिपकली के जोड़े बनाए जाते हैं और उनकी प्रजनन दर को बढ़ाने के लिए तापमान और नमी को वैज्ञानिक तरीके से नियंत्रित किया जाता है।
अवैध तस्करी की समस्या:
भारत, म्यांमार, और नेपाल से Tokay Gecko की तस्करी होती रही है। इसलिए इस खेती को कानूनी मान्यता, नियंत्रण और पालन के नियमों की ज़रूरत है।
भारत क्या सीख सकता है?
भारत जैसे देश में जहां कृषि संकट और युवा बेरोजगारी एक बड़ी चुनौती है, ऐसे मॉडल प्रेरणादायक हो सकते हैं: हालांकि, भारत में वन्यजीव कानून और सामाजिक सोच को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी है कि: सही नियम बनाए जाएं,वैज्ञानिक परीक्षण हों, और इन जीवों का संरक्षण बना रहे।
निष्कर्ष:
चीन में की जा रही चिपकली, मेंढ़क और झींगुर की खेती कोई सनक नहीं, बल्कि जलवायु संकट, भविष्य की पोषण ज़रूरतें और आर्थिक अवसर के समाधान की दिशा में एक साहसिक कदम है।
भारत जैसे देश को भी अब पारंपरिक खेती के साथ-साथ वैकल्पिक, टिकाऊ और वैज्ञानिक खेती के रास्तों पर विचार करना चाहिए। इन प्रयोगों से हम न केवल नई आय के रास्ते खोल सकते हैं, बल्कि बदलते युग की जरूरतों के अनुसार तैयार भी हो सकते हैं। ऐसी जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ आपको ये जानकारी कैसे लगी कमेंट करके जरूर बताइये ।।जय हिन्द जय भारत ।।
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