बढ़ती गर्मी का कृषि पर प्रभाव और बचाव के उपाय

29 Apr 2025 | NA
बढ़ती गर्मी का कृषि पर प्रभाव और बचाव के उपाय

ग्लोबल वार्मिंग आधुनिक समय की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है, जिसका प्रभाव विश्व की सभी जलवायु प्रणालियों पर देखा जा रहा है। तापमान में लगातार वृद्धि, अनियमित वर्षा, बर्फ के पिघलने और चरम मौसम की घटनाओं ने कृषि पर गहरा असर डाला है। कृषि, जो लाखों लोगों की आजीविका का आधार है, इस जलवायु परिवर्तन के कारण संकट में आ गई है। किसानों को अधिक तापमान, जल संकट, कीट-रोगों की वृद्धि और उत्पादन में गिरावट जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इस लेख में हम ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ती गर्मी के कृषि पर प्रभाव, इससे बचाव के उपाय और समाधान पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

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ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ती गर्मी का कृषि पर प्रभाव-

ग्लोबल वार्मिंग का कृषि पर व्यापक प्रभाव पड़ा है, जिससे फसल उत्पादन, मिट्टी की उर्वरता और जल संसाधनों पर नकारात्मक प्रभाव देखा गया है।

फसल उत्पादन में गिरावट:

गर्मी बढ़ने से फसलों की वृद्धि दर प्रभावित होती है। तापमान बढ़ने से कुछ फसलें जल्दी पकती हैं, लेकिन उनका दाना कमजोर और उत्पादन कम हो जाता है। गेहूं, धान और मक्का जैसी फसलें उच्च तापमान में ठीक से नहीं बढ़ पातीं, जिससे उपज में कमी आती है।

जल संकट और सूखा:

गर्मी के बढ़ने से जल स्रोत तेजी से सूख रहे हैं, जिससे सिंचाई के लिए जल की कमी हो रही है। कम वर्षा या अनियमित वर्षा के कारण भूजल स्तर गिरता जा रहा है, जिससे किसानों को सिंचाई के लिए अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

कीट और बीमारियों का बढ़ना:

बढ़ते तापमान के कारण कई नए कीट और बीमारियाँ फसलों पर हमला कर रही हैं। टिड्डियों, व्हाइटफ्लाई और स्टेम बोरर जैसे कीटों की संख्या बढ़ गई है, जिससे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है।

मृदा की उर्वरता में कमी:

अत्यधिक गर्मी के कारण मिट्टी में नमी की कमी हो जाती है, जिससे उसकी जैविक संरचना प्रभावित होती है। गर्म जलवायु में कार्बनिक पदार्थ तेजी से नष्ट होते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता घटती है।

पशुधन और दुग्ध उत्पादन पर असर:

गर्मी का प्रभाव केवल फसलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पशुधन पर भी प्रभाव डालता है। उच्च तापमान के कारण पशुओं में तनाव बढ़ता है, जिससे दूध उत्पादन में गिरावट आती है और उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

चरम मौसम घटनाएँ (Extreme Weather Events):

ग्लोबल वार्मिंग के कारण चक्रवात, बेमौसम बारिश, तूफान और ओलावृष्टि जैसी घटनाएँ बढ़ रही हैं, जो फसलों को भारी नुकसान पहुँचाती हैं।

ग्लोबल वार्मिंग से बचाव के उपाय और समाधान-

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करने के लिए किसानों को कुछ आधुनिक और पारंपरिक तकनीकों का सहारा लेना चाहिए। इनमें कुछ महत्वपूर्ण उपाय है-

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जल संरक्षण तकनीकों का उपयोग-

  • ड्रिप इरिगेशन और स्प्रिंकलर सिस्टम: पानी की बचत के लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई अपनाई जानी चाहिए।
  • वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting): वर्षा के जल को इकट्ठा कर सिंचाई के लिए उपयोग करना चाहिए।
  • मल्चिंग (Mulching): मिट्टी को ढककर उसकी नमी बनाए रखना चाहिए, जिससे जल की बचत होती है।

जलवायु अनुकूल फसलों का चयन:

सूखा सहनशील और कम पानी में उगने वाली फसलें जैसे बाजरा, ज्वार, रागी, दलहन और तिलहन को अपनाया जाए। जीएम (GM) और हाईब्रिड बीजों का उपयोग किया जाए, जो उच्च तापमान में भी अच्छा उत्पादन दें।

मृदा स्वास्थ्य बनाए रखना:

जैविक खाद और कंपोस्ट का उपयोग कर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जाए। हरी खाद और फसल चक्र (Crop Rotation) को अपनाकर मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखी जाए।

हरित आवरण और वृक्षारोपण को बढ़ावा:

खेतों की मेड़ पर वृक्ष लगाकर गर्मी से बचाव किया जा सकता है। वनीकरण (Afforestation) को बढ़ावा देकर तापमान को नियंत्रित किया जा सकता है।

तकनीकी और वैज्ञानिक उपाय-

  • कृषि मौसम पूर्वानुमान का पालन करें: मौसम विभाग द्वारा जारी पूर्वानुमानों को ध्यान में रखकर फसल प्रबंधन करें। 
  • कीट और रोग नियंत्रण तकनीक: जैविक कीटनाशकों का प्रयोग कर फसलों को सुरक्षित रखा जाए।

पशुपालन और मत्स्य पालन को बढ़ावा:

पशुओं को गर्मी से बचाने के लिए छायादार स्थानों पर रखा जाए और पर्याप्त पानी उपलब्ध कराया जाए। मछली पालन को बढ़ावा दिया जाए, क्योंकि यह कम पानी में भी लाभकारी हो सकता है।

नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग:

सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप और उपकरणों का उपयोग कर बिजली की बचत की जाए। बायोगैस संयंत्र स्थापित कर जैविक कचरे का सही उपयोग किया जाए।

सरकार और समाज की भूमिका-

ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए सरकार और समाज दोनों को मिलकर प्रयास करना होगा। सरकारी योजनाएँ और नीतियाँ: किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने के लिए सरकार को अधिक अनुदान और सब्सिडी प्रदान करनी चाहिए। जल संरक्षण और वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिए नई योजनाएँ चलाई जानी चाहिए। जैविक खेती और प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित किया जाए।

ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ती गर्मी का कृषि पर गहरा प्रभाव पड़ा है, जिससे फसल उत्पादन, जल संसाधन और पशुपालन प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन सही कृषि तकनीकों, जल संरक्षण, वैज्ञानिक खेती और हरित ऊर्जा के उपयोग से इस संकट से बचा जा सकता है। किसानों को जलवायु अनुकूल खेती अपनाने और सरकार को नीतिगत सुधार लाने की आवश्यकता है। यदि हम समय रहते प्रभावी कदम उठाएँ, तो हम इस चुनौती का सामना कर सकते हैं और भविष्य की पीढ़ियों के लिए कृषि को संरक्षित रख सकते हैं। ऐसी ही जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ धन्यवाद॥ जय हिंद जय किसान॥

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