जेट्रोफा फार्मिंग की बढ़ती मांग


किसानों के लिए एक बेहतर विकल्प बन रही जेट्रोफा की खेती, जहां पेट्रोलियम ईंधन के दाम दिनों दिन आसमान छूते जा रहे हैं। वहीं किसान इसे प्राकृतिक रूप से प्राप्त कर ईंधन संसाधनों को बढ़ा रहे हैं। जेट्रोफा या रतनजोत एक महत्वपूर्ण बायोडीजल फसल है, जो कम पानी और पोषक तत्वों की कमी भी सहन कर सकती है। जेट्रोफा (Jatropha curcas) के पौधे मुख्य रूप से बायोडीजल उत्पादन के लिए जाने जाते हैं। इसकी पत्तियों और बीजों का उपयोग औषधीय गुणों के लिए भी होता है। जेट्रोफा की खेती में लागत और ज्यादा मुनाफा मिलता है, इसलिए यह किसानों के लिए बेहद उपयोगी एवं अच्छी फसल साबित हो सकती है।
उपयुक्त जलवायु:
दरअसल जेट्रोफा एक झाड़ी वर्ग का पौधा होता है, जो शुष्क व अर्धशुष्क क्षेत्रों में उगता है। यह 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान में सबसे अच्छा विकसित होता है। कम वर्षा क्षेत्र वाले किसानों के लिए यह एक उपयुक्त फसल है। इसके अंकुरण के लिए गर्म नमी युक्त जलवायु अच्छी होती है। वैसे तो इसे विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगा सकते हैं, लेकिन अच्छी जल निकासी वाली बालू या दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त है। अत्यधिक क्षारीय या अम्लीय मिट्टी से बचना चाहिए। भारत में राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उड़ीसा राज्य मिट्टी की दृष्टि से भी जेट्रोफा के लिए अनुकूल है, इसलिए इन राज्यों में इसकी खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।

खेती करने की विधि:
जेट्रोफा के पौधे को सीधे खेत में नहीं लगाया जाता, सबसे पहले बी के माध्यम से उगाकर इसकी नर्सरी लगाई जाती है। उसके बाद खेत में पौध लगाते हैं। जेट्रोफा को लगाने के लिए गड्ढे खोदने का कार्य अप्रैल के महीने में करना चाहिए ताकि जून-जुलाई तक 1 घंटे सूर्य की धूप में खुले रहे और इनमें मिट्टी तथा बारीक होने के साथ कीड़े मकोड़े भी मर जाए, जो जैविक खाद का कार्य करते हैं। जेट्रोफा के पौधे की पौधे से दूरी 50 से 100 सेंटीमीटर तथा पंक्तियों की दूरी 2 मीटर दूर रखी जानी चाहिए। इसके पौधे बहुत ही मुलायम होते हैं, इसलिए सावधानी के साथ इन्हें गड्ढों में रोपना चाहिए। इसका पौधा रोपण बादल वाले मौसम में करें अर्थात् कड़ी धूप में पौधारोपण से बचना चाहिए।इसी के साथ जेट्रोफा के पौधों के लिए कंपोस्ट जैविक खाद का उपयोग करें जिसमें नाइट्रोजन फास्फोरस और पोटाश का उचित संतुलन होना चाहिए। पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए नियमित रूप से छंटाई भी करें।
फसल कटाई:
जेट्रोफा की फसल आमतौर पर में से जुलाई के बीच लगाई जाती है, जब वर्षा का मौसम शुरू होता है। यह समय पौधों के विकास के अनुकूल होता है और बारिश के पानी का लाभ उठाने में मदद करता है। फसल लगाने के बाद जेट्रोफा के पौधे 6 से 8 महीने में फसल देना शुरू कर देते हैं।

जेट्रोफा फल के रूप में छोटे हरे और कच्चे फलों का उत्पादन करता है। जब यह फल पक जाती हैं तो ये भूरे रंग के होते हैं और अंदर से बीज निकलते हैं। हर फल में आमतौर पर 2 से 3 बीज होते हैं, जो बायोडीजल के लिए उपयोगी है। इन बीजों का आकार 1 से 2 सेंटीमीटर होता है और उनका तेल निकालकर बायोडीजल बनाया जाता है। फसल उत्पादकता की बात करें तो वह विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है, लेकिन आमतौर पर एक एकड़ में 800 से 1200 किलो बीज प्राप्त हो सकता है। यदि पौधे अच्छे से विकसित हो और उचित देखभाल की जाए तो यह उत्पादन और भी बढ़ सकता है।
जेट्रोफा के बीजों से बायोडीजल बनाने की विधि:
सबसे पहले उच्च क्वालिटी के जेट्रोफा बीजों को कलेक्ट किया जाता है। इसी के साथ अन्य केमिकल्स जैसे मेथेनॉल या एथेनॉल एवं पोटेशियम या सोडियम हाइड्रोक्साइड आदि का उत्प्रेरक के रूप में प्रयोग किया जाता है। जेट्रोफा के बीजों को एक्सपेलर मशीन में डाला जाता है तथा साथ में अल्कोहल जो की मेथेनॉल या एथेनॉल एवं पोटैशियम हाइड्रोक्साइड को मिलते हैं। इस उत्प्रेरक क्रिया के बाद ही आसवन विधि प्रारंभ होती है। इनकी वाष्पोत्सर्जन क्रिया द्वारा डीजल तथा ग्लिसरीन अलग-अलग हो जाते हैं। इसमें तेल बायोडीजल के रूप में तथा ग्लिसरीन को अनेक प्रकार के उपयोग में लाया जाता है। बाकी बची हुई खली जैविक खाद के रूप में खेतों या बायोगैस बनाने के संयंत्रों में काम आ जाती है। राष्ट्रीय तिलहन एवं वनस्पति तेल विकास बोर्ड के एक आंकड़ों से- यदि 100 किलोग्राम जेट्रोफा तेल एवं 24 किलोग्राम मेथेनॉल और 2.5 किलोग्राम सोडियम हाइड्रोक्साइड लें तो उससे 100 किलोग्राम बायोडीजल एवं 26 किलोग्राम ग्लिसरोल प्राप्त होता है।

अन्य उपयोग:
जेट्रोफा या रतनजोत का उपयोग अन्य के क्षेत्र में किया जाता है। इससे स्थाई ऊर्जा स्रोत के रूप में बायोडीजल तो बनता ही है साथ में जेट्रोफा की पत्तियों और बीजों का उपयोग पारंपरिक औषधीय में भी किया जाता है। जेट्रोफा की पत्तियों और पौधों को जैविक खाद के रूप में उपयोग करते हैं तथा इसकी लकड़ी का उपयोग फर्नीचर निर्माण में भी किया जाता है। साथ में जेट्रोफा मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में भी मदद करता है।इसका प्रयोग त्वचा कैंसर पाचन श्वसन और संक्रामक रोगों से संबंधित कई बीमारियों के उपचार के लिए भी किया जाता है।
जेट्रोफा का भविष्य:
जेट्रोफा की खेती का भविष्य उज्जवल है, विश्व भर में बायोडीजल की मांग बढ़ रही है और भारत सरकार भी इसे सब्सिडी प्रदान कर प्रोत्साहित कर रही है। इसके अलावा जेट्रोफा का उपयोग औषधि क्षेत्र में भी बढ़ रहा है। इसके बीजों की कीमत बाजार में विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है, जैसे उत्पादन का स्तर और मांग। आमतौर पर जेट्रोफा के बीज 30 से ₹50 प्रति किलोग्राम के बीच बिकते हैं। बायोडीजल के उत्पादन के लिए इसकी मांग में भी वृद्धि हो रही है, जिससे किसानों को अच्छी आय प्राप्त हो सकती है।

अन्य प्रमुख बातें:
जेट्रोफा को एक प्रमुख जैव इंजन फसल माना जाता है, लेकिन यह खाद्य फसल नहीं है ,क्योंकि इसका तेल खाने योग्य नहीं है, अपितु जहरीला होता है। वर्तमान में उगाई जाने वाले अधिकांश जेट्रोफा जहरीले ही होते हैं और जो बीज खली पशु चारे के रूप में प्रयुक्त होती है वह भी पशुओं के लिए अनुपयुक्त है। अतः इसके सेवन से बचना चाहिए।इसका पौधा खेत में एक बार लगाने पर दूसरे वर्ष फल देना शुरू कर देता है तथा 35 से 40 वर्ष तक जीवित रहता है। कंइसकी आर्थिक उम्र लगभग 35 वर्ष है।
दोस्तों जेट्रोफा की खेती एक लाभदायक और सतत कृषि विकल्प है, जो किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बना सकता है। सही जलवायु मिट्टी और देखभाल के साथ किसान जेट्रोफा से अच्छे लाभ कमा सकते हैं। इसके पर्यावरणीय फायदे भी हैं, जो इसे एक आदर्श विकल्प बनाते हैं। यदि आप जेट्रोफा की खेती करने की सोच रहे हैं तो सुनिश्चित करें कि आपको इसके सभी पहलूओं का ज्ञान हो और आप स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से भी सलाह लें। कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट कर अवश्य बताएं तथा ऐसे ही जानकारी के लिए जुड़े रहे "Hello Kisaan" के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद, जय किसान॥
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