काली हल्दी की खेती किसान को करेगी मालामाल


काली हल्दी एक ऐसा महत्वपूर्ण औषधीय पौधा जो अपने गुणों और स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है। ये विशेष रूप से भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में उपयोग होता है। जो किसान भाई कम जगह में खेती कर अधिक आमदनी करना चाहते हैं, वे इसकी खेती कर सकते हैं। इसकी बुवाई नॉर्मल हल्दी की तरह ही होती है। क्योंकि इसकी कीमत बहुत ज्यादा है, इसलिए इसका बीज भी आमतौर पर महंगा देखने को मिलता है, जिस कारण आम किसान इसे अपने खेतों में कम ही लगते हैं। आये काली हल्दी से संबंधित संपूर्ण जानकारी लेते हैं निकुंज से, जो सफल रूप से इसका उत्पादन कर रहे हैं।

काली हल्दी की महत्ता:
जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि काली हल्दी का रंग बाहर से काला तथा अंदर से बीच में गहरा नीला होता है। इसका पौधा सामान्य हल्दी की तरह हरा तथा पत्ती के बीच की डंडी काली होती है। इसका प्रयोग मुख्य रूप से कैंसर की उपचार औषधि तथा कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स में होता है।
लागत, मूल्य और बाजार:
वर्तमान में बेचने हेतु काली हल्दी का बाजार डेवलप होने लगा है। अब से पहले इसको अंतरराष्ट्रीय बाजार पर एक्सपोर्ट किया जाता था। जैसे अमेरिका और साउथ अफ्रीका जैसे कंट्रीज इसको इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में या अन्य दवाइयां के प्रयोग हेतु यूज़ करते थे; परंतु अब दवाई तथा हर्बल प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनियों से संपर्क कर भी इसे बचा जा सकता है।

क्योंकि इसकी फसल को लगाने में बहुत अधिक लागत आती है, इसलिए शुरू में कम ही फसल लगानी चाहिए और ट्रायल बेस पर इस का बाजार ढूंढ कर फसल करें तो किसानों के लिए अधिक लाभदायक होगा। इसकी कीमत गुणवत्ता के आधार पर भिन्न-भिन्न हो सकती है फिर भी यदि औसत कीमत की बात करें तो बाजार में ₹500 से लेकर ₹5000 तक इसकी कीमत देखने को मिल जाती है। फसल लगाते समय इसका बीज भी ₹800 से ₹900 प्रति किलो तक मिलता है और 1 एकड़ में लगाने के लिए कम से कम 800 से 1000 किलो तक बीज की आवश्यकता होती है। उपज की बात कर तो बीज लगाने के 8 गुणा तक उपज आसानी से होती है। इस प्रकार यदि 1 एकड़ में 1000 किलो बीज लगाया है, तो उससे 8000 किलो तक काली हल्दी का उत्पादन हो जाता है। अधिक लागत वाली फसल होने के कारण किसान भाइयों को इसे छोटे पैमाने पर ही शुरू करना चाहिए।
आवश्यक जलवायु:
काली हल्दी की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु सर्वोत्तम होती है अर्थात् यह भारत में लगभग सभी स्थानों पर उगाई जा सकती है। फिर भी इसकी अधिक पैदावार पूर्वोत्तर वाले राज्य करते हैं। वर्तमान में इसकी फसल उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि राज्यों में भी देखने को मिल रही है।
इसके लिए आदर्श तापमान 20 से 35 डिग्री सेल्सियस तथा वार्षिक वर्षा 1500 से 2500 mm होनी आवश्यक है, वरना कृत्रिम रूप से सिंचाई की व्यवस्था की जाती है। मिट्टी की बात करें तो यह हल्की बलुई या चिकनी मिट्टी में बेहतर उपज देती है तथा खेत को अच्छे से जुताई कर जरूरी खाद भी डालने चाहिए।
खेती की प्रक्रिया:
बलुई, दोमट, मटियार या चिकनी मिट्टी के खेत की अच्छे से जुताई कर उसमें जरूरी खाद डालकर खेत तैयार करें तथा फिर काली हल्दी के कंद का उपयोग करें। इसके लिए काली हल्दी को 20 से 25 ग्राम के छोटे-छोटे टुकड़ों में बनाकर बोया जाता है। इसकी बुवाई की गहराई 15 से 20 सेंटीमीटर तक तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर दूर होनी चाहिए।

गर्मी के मौसम में इसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है, इसलिए उचित सिंचाई की व्यवस्था का प्रबंध भी करना चाहिए। खाद्य और पोषण के लिए नीम खली, गोबर की खाद और NPK उर्वरकों का प्रयोग नियमित रूप से पौधें की वृद्धि के अनुसार करते रहना चाहिए। इसी के साथ किसान को रोगों से बचाव के लिए उचित कीटनाशक तथा जैविक कीटनाशकों का उपयोग करना आना भी अति आवश्यक है। यदि इस प्रक्रिया से काली हल्दी की खेती की जाए तो अच्छी मात्रा में उत्पादन देखने को मिलेगा और अधिक लाभ भी होगा।
फसल की अवधि और उपज:
काली हल्दी की फसल 7 से 9 महीने में पैक कर तैयार हो जाती है, वहीं एक एकड़ में 80 से 90 कुंतल तक उत्पादन होता है। इसकी बिक्री ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर सबसे ज्यादा होती है। कई ऑनलाइन वेबसाइट तथा मीडिया प्लेटफॉर्म पर ऑर्गेनिक काली हल्दी की कीमत 500 से ₹5000 तक दिखाई जाती है।

तो दोस्तों काली हल्दी की खेती एक लाभकारी व्यवसाय हो सकता है। सही तकनीकी और प्रबंधन के साथ किया जाए तो इसके औषधीय गुना के कारण इसकी मांग बढ़ रही है, जिससे किसानों को अच्छा लाभ मिलेगा। किसान इस दिशा में ध्यान देकर न केवल अपनी आय बढ़ा सकते हैं; बल्कि काली हल्दी को एक महत्वपूर्ण फसल बना सकते हैं। कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट कर अवश्य बताएं तथा ऐसे ही रोचक तथ्यों के लिए जुड़े रहे "हेलो किसान" के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद, जय किसान॥
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