कम पानी में ज्यादा मुनाफा: मखाना की खेती का आसान तरीका


"पानी में उगने वाला सोना" - मखाना को यही कहा जाता है। खासतौर पर बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में सदियों से मखाने की खेती होती आई है, लेकिन अब देश के अन्य हिस्सों में भी यह लोकप्रिय होती जा रही है। मखाना न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, बल्कि इसकी खेती किसानों को कम लागत में अच्छा मुनाफा देती है। आइए जानते हैं मखाना की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ — जमीन से लेकर बाजार तक।

मखाना क्या है?
मखाना एक जलीय पौधा है, जो तालाबों और स्थिर पानी में उगता है। इसे अंग्रेजी में Fox Nut और वैज्ञानिक भाषा में Euryale ferox कहते हैं। इसके बीजों को सुखाकर और भूनकर सफेद कुरकुरे दाने बनाए जाते हैं, जिन्हें हम सब मखाना कहते हैं। यह स्वादिष्ट होने के साथ-साथ सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद है डायबिटीज, हार्ट प्रॉब्लम, वजन घटाने और शरीर को एनर्जी देने में मखाना काफी उपयोगी माना जाता है।
जलवायु और जमीन कैसी हो?
मखाना की खेती के लिए गर्म और आर्द्र (नमी वाली) जलवायु सबसे अच्छी रहती है।
इसके लिए वह क्षेत्र चुना जाता है जहां साल के 4 – 6 महीने तक पानी जमा रह सके।
तालाब, पोखर या ऐसी जगह जहां पानी की गहराई करीब 1 से 1.5 मीटर तक हो वही उपयुक्त मानी जाती है।
जमीन काली, चिकनी और जैविक तत्वों से भरपूर होनी चाहिए।

बीज कैसे लगाएं?
1. समय: मखाना की बुवाई मार्च-अप्रैल में की जाती है।
2. बीज चयन: अच्छे और बड़े आकार वाले बीजों को चुनें।
3. भिगोना: बीजों को 3 - 4 दिन पानी में भिगोया जाता है जिससे अंकुर निकलने लगे।
4. बुवाई: इसके बाद बीजों को पानी में फैला दिया जाता है। धीरे-धीरे पौधे पानी की सतह पर तैरते हुए फैल जाते हैं।
देखभाल कैसे करें?
पानी की सफाई: तालाब में पहले से मौजूद जलकुंभी, काई और खरपतवार को निकाल दें।
नमी बनाए रखें: पूरे सीजन में पानी की गहराई एक जैसी बनाए रखें।
कीट प्रबंधन: मखाना पर आमतौर पर कीट नहीं लगते, इसलिए रसायनों की जरूरत नहीं पड़ती।
जैविक खाद: गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट डालना अच्छा रहेगा।
फसल तैयार होने में कितना समय लगता है?
मखाना का पौधा लगभग 4 महीने में परिपक्व हो जाता है।
जुलाई-अगस्त में बीज पक जाते हैं और तालाब की सतह पर या नीचे गिरने लगते हैं।
इन बीजों को मज़दूर पानी में उतरकर हाथ से चुनते हैं। इसे मखाना चुगाई कहते हैं।
मखाना कैसे बनता है?
1. बीजों को तालाब से निकालकर 2-3 दिन धूप में सुखाया जाता है।
2. फिर उन्हें भट्टी में सेंका जाता है।
3. सेंकने के बाद बीजों को हथौड़े या मशीन से तोड़ा जाता है तब जाकर सफेद मखाना निकलता है।
4. अच्छे दानों को अलग करके बाजार में बेचा जाता है।

एक एकड़ में कितनी कमाई होती है?
- एक एकड़ तालाब से 15–20 क्विंटल तक मखाना निकल सकता है।
- बाजार में इसकी कीमत 500 से 1000 रुपये प्रति किलो तक होती है।
- यानी एक सीजन में 2 से 3 लाख रुपये की कमाई हो सकती है।
- जबकि लागत केवल 30-40 हजार रुपये के आसपास आती है।
मखाना की बढ़ती मांग और बाजार
- आजकल लोग हेल्दी स्नैक्स के तौर पर मखाना को पसंद कर रहे हैं।
- यह बच्चों, बुजुर्गों और बीमार लोगों के लिए भी अच्छा माना जाता है।
- बड़े ब्रांड जैसे पतंजलि, ममराज, योगा बार आदि भी मखाना खरीदते हैं।
- विदेशों में भी मखाने की भारी डिमांड है अमेरिका, जापान और यूरोप तक इसे एक्सपोर्ट किया जाता है।
सरकारी मदद और ट्रेनिंग
- सरकार ने बिहार में मखाना मिशन शुरू किया है।
- किसान क्रेडिट कार्ड, सब्सिडी और मखाना प्रोसेसिंग यूनिट लगाने में सहायता दी जा रही है।
- कृषि विज्ञान केंद्र और ICAR जैसे संस्थान मखाना किसानों को ट्रेनिंग देते हैं।
निष्कर्ष
मखाना की खेती आज के समय की स्मार्ट खेती है जिसमें कम जमीन, कम रासायन, कम लागत और ज्यादा मुनाफा है। अगर आपके पास तालाब या जलभराव वाली जमीन है, तो मखाना की खेती किसान भाइयो के लिए एक सुनहरा अवसर बन सकती है। जैविक और प्राकृतिक होने के कारण मखाना न केवल पैसा कमाने का साधन है, बल्कि देश-विदेश में भारत की पहचान भी बन रहा है।
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