पर्ल फार्मिंग कम लागत अधिक मुनाफा


पर्ल फार्मिंग जिसे मोती उत्पादन या मोती की खेती भी कहा जाता है। एक ऐसी अनोखी कृषि पद्धति जो जल में की जाती है। यह प्रक्रिया जलीय जीवों मुख्य रूप से आई-स्टार के जरिए मोती उत्पन्न करने पर आधारित है। इस कृषि का सबसे बड़ा फायदा की जिस किसान के पास अधिक भूमि नहीं है, वह भी इसे बहुत कम जगह में आसानी से कर अपनी आमदनी बढ़ा सकता है। आज हम जानेंगे पर्ल फार्मिंग किस विधि द्वारा होती है, इसकी बाजार में क्या मांग है, किस कीमत पर बिकती है तथा इसको करने में किसान भाइयों को क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए।
पर्ल फार्मिंग के फायदे:
सबसे पहले मोती की खेती के लिए सही ट्रेनिंग होना अति आवश्यक है। इसकी खेती के लिए कई सरकारी और प्राइवेट संस्थानों द्वारा ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए जाते हैं। उड़ीसा के भुवनेश्वर में स्थित CIFA में भी प्रशिक्षण दिया जाता है, लेकिन अब दूसरे राज्य में मोती की खेती का प्रशिक्षण दिया जाने लगा है।भारत में मोती की खेती व्यावसायिक रूप से लाभदायक है। मोतियों की उच्च मांग तथा भारी मुनाफे को देखते हुए मोती की खेती करना अच्छा विकल्प हो सकता है। इन सीप से निकलने वाले मोतियों का इस्तेमाल आभूषण और ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनाने में किया जाता है।

पर्ल फार्मिंग से उत्पादित मोतियों के प्रकार:
पर्ल की कई प्रकार की किस्में होती है, जिसमें बेशकीमती गोल्डन पर्ल, सबसे सामान्य सफेद पर्ल तथा सबसे दुर्लभ और उच्च मूल्य पर बिकने वाला ब्लैक पर्ल माना जाता है। इनमें डिजाइनदार मोती भी होते हैं, जिनकी कीमत ज्यादा होती है। ये एक सीप में से दो मोती निकलते हैं।
राजस्थान में 6 साल से पर्ल फार्मिंग कर रहे सिंघानिया जी का अनुभव:
इन्होंने 70 फीट लंबा, 20 फीट चौड़ा तथा 6 फीट गहराई के क्षेत्रफल में समान आकार के 6 पोंड बनाए हुए हैं। जिनमें प्रत्येक में 1200 सीप हैं। इस प्रकार ये 6 पोंड में 7200 सीप का पालन कर रहे हैं। इन सीप से 1 से 2 साल में मोती निकलते हैं, जो गुणवत्ता अनुसार तीन प्रकार के होते हैं। राउंडेड मोती बनने में सबसे ज्यादा समय लगता है। सिंघानिया जी बताते हैं कि किसान भाइयों को सीप से मोती अधिक से अधिक मात्रा में प्राप्त करने चाहिए, क्योंकि भारतीय बाजारों में इसकी पूर्ति नहीं हो पा रही है। अतः इसकी मांग बनी रहती है। इसका सबसे बड़ा बाजार बेंगलुरु को भी माना जाता है। यदि कोई किसान भाई इनसे संपर्क कर अधिक जानकारी लेना चाहे तो इनका मोबाइल नंबर 96360 55229 है।

खेती करने का तरीका:
मोती की खेती के लिए सबसे पहले स्वस्थ व्यस्क सीप का चयन करना होता है। इसलिए किसान को पहले अच्छे से ट्रेनिंग लेना अति आवश्यक है। कुछ लोग 2 दिन की ट्रेनिंग में इसे सीखने की कोशिश करते हैं, किंतु 2 दिन में अच्छे से नहीं सीखा जा सकता, इसलिए ट्रेनिंग के उपरांत प्रशिक्षण केंद्र पर ही एक बार खुद से प्रेक्टिकल करके अवश्य देखें।
दरअसल मोती की खेती में मुख्य उत्पादक जीव मीठे पानी वाले होते है। स्वस्थ व्यस्क सीप का चयन कर उसे साफ पानी में धोकर टैंक या छोटे तालाब में वातावरण के अनुकूल ढालने के लिए 10 दिन तक रखा जाता है। फिर उसकी सर्जरी कर उनमें न्यूक्लियस डालकर तीन दिन एंटीबॉडी में रखते है। इसके बाद सभी सीप को 13-14 महीने तक तालाब में छोड़ देते हैं।इसमें समय-समय पर पानी की गुणवत्ता की जांच भी करते रहना पड़ता है, क्योंकि सिपों द्वारा पानी में अमोनिया की मात्रा बढ़ जाती है, जिसे एक क्यूबिक मशीन में लेकर उसकी पीएच वैल्यू काउंट की जाती है। तब पीएच वैल्यू अधिक होने पर पोंड का आधा पानी निकाल कर उसमें फ्रेश वाटर भरने से पीएच वैल्यू संतुलित हो जाती है।

लागत:
कोई भी किसान इसकी शुरुआत 65 से 70 हजार रुपए इन्वेस्ट पर आसानी से कर सकता है। एक सीप पर लगभग 14-15 रुपए का खर्चा आता है, जिसमें सीप की मूल्य और उसके खाने का भी खर्च शामिल है। इन सीपों को समुद्र से प्राप्त किया जाता है। जब यह मुलायम पड़ जाती है तो इंस्ट्रूमेंट के माध्यम से सर्जरी कर न्यूक्लियस स्थापित किया जाता है। इस प्रकार एक सब से दो मोती उच्च क्वालिटी के निकाल सकते हैं। इस प्रकार किसान भाई 1 वर्ष में इससे लागत का तीन से चार गुना तक आसानी से कमा सकते हैं।
बाजार में कीमत:
पर्ल के मूल्य कई कारकों पर निर्भर करते हैं, जैसे की आकार, रंग, गुणवत्ता और बाजार की मांग। सामान्यतः एक ग्राम के मोती की कीमत ₹500 से लेकर ₹5000 तक हो सकती है। जैसे राउंडेड मोती बनने में ज्यादा समय लगता है, उसी प्रकार यह बिकता भी महंगा है। प्रत्येक मोती की कीमत ₹1000 होती है। सीप से उत्पादित मोती सामान्यतः एक से डेढ़ ग्राम का होता है। मोती की सही कीमत का आकलन लैब में परीक्षण करने के बाद ही निर्धारित किया जा सकता है।
आखिर मोती कैसे बनता है:
यह मोती एक प्रकार का खनिज होता है, जो मोती पैदा करने वाली मछलियों या आइस्टर के अंदर प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होता है। यह मोती तब बनते हैं, जब कोई बाहरी कण जैसे कि एक छोटा कंकर या परजीवी आइस्टर या सीप के शरीर में प्रवेश कर जाता है। तब सीप अपनी सुरक्षा के लिए उस कण को परतों में लपेटने लगती है, जिससे मोती का निर्माण होता है।

चुनौतियां:
तापमान और जल स्तर में बदलाव से मोती की खेती प्रभावित हो सकती है। सीप को विभिन्न रोगों का सामना करना पड़ सकता है, जो उत्पादन को प्रभावित करेंगे। इसी के साथ वैश्विक स्तर पर मोती की मांग और आपूर्ति में परिवर्तन बाजार की स्थिति को भी प्रभावित कर सकते हैं। इस प्रकार किसान को उपरोक्त चुनौतियों का सामना भी करना पड़ सकता है, इसलिए सभी कारकों की जांच परख कर ही खेती की शुरुआत करनी चाहिए।
तो दोस्तों मोती की खेती एक अद्वितीय और लाभकारी व्यवसाय है, जो न केवल आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देता है; बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि सही तरीके से की जाए तो यह ना केवल किसानों के लिए आय का स्रोत बन सकती हैं; बल्कि समुद्री स्थिति के तंत्र को भी संतुलित रख सकेंगी। कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट कर अवश्य बताएं तथा ऐसे ही जानकारी के लिए जुड़े रहे "हेलो किसान" के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद, जय किसान॥
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