ऐसे बचाएं शीतलहर से फसलें

20 Jan 2025 | NA
ऐसे बचाएं शीतलहर से फसलें

शीतलहर (cold wave) एक प्राकृतिक आपदा है, जो कम तापमान और तेज़ ठंड से कृषि को गंभीर रूप से प्रभावित करती है। फसलों की वृद्धि और उनके उत्पादन पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आये समझते हैं कि शीतलहर किन फसलों के लिए नुकसानदायक है, किस प्रकार का नुकसान होता है, और बचाव के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए।

किन फसलों के लिए शीतलहर नुकसानदायक है?

दरअसल सर्दियों में उगने वाली अर्थात् रबी की फसलों को शीतलहर का सामना करना पड़ता है, जिनमें गेहूं, सरसों, मटर, चना, आलू तथा फलदार वृक्षों में आम, केला, अमरूद, पपीता और सब्जियां में टमाटर, बैंगन, मिर्च, कद्दू आदि प्रमुख रूप से है। उपरोक्त फसलों में शीतलहर के चलते विभिन्न रोग पनप जाते हैं, जो उनकी उत्पादकता को प्रभावित करते हैं। इनसे बचने के लिए बहुत सारे उपाय होते हैं, जिनका पालन कर किसान अपनी फसल को बचा सकते हैं।

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शीतलहर से होने वाले नुकसान:

शीतलहर के कारण फसलों के पत्ते झुलस जाते हैं और उनकी हरित कोशिकाएं (chlorophyll) नष्ट हो जाती हैं। ठंड के कारण फलदार वृक्षों में फूल और छोटे फल गिरने लगते हैं। पौधों का विकास रुक जाता है और उपज में भारी कमी आती है। शीतलहर के साथ पाला गिरने से फसलें पूरी तरह बर्बाद भी हो सकती हैं। ठंड के कारण कुछ विशेष रोगों और कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है, जैसे: गेहूं में कंडुआ रोग, आलू में झुलसा रोग (Late Blight), गन्ने में लाल सड़न रोग

रोग और बचाव के उपाय:

झुलसा रोग (Late Blight)- इस रोग में आलू और टमाटर के पत्तों पर भूरे रंग के धब्बे, जो बाद में काले हो जाते हैं। इससे बचाव के लिए खेत में पानी जमा न होने दें। 1% बोर्डो मिश्रण (copper sulphate और चूना) का छिड़काव करें। मेटालेक्सिल-8% + मैंकोजेब-64% (Metalaxyl + Mancozeb) का उपयोग करना अच्छा माना जाता है।

कंडुआ रोग (Loose Smut) : यह रोग प्रमुख रूप से गेहूं की बालियों में काले रंग का चूर्ण जैसा देखने को मिलता है, इससे बचाव के लिए किसान को बुआई के समय स्वस्थ बीज का चयन करना चाहिए और बीज को थीरम या कैप्टान से उपचारित करना चाहिए।

लाल सड़न रोग (Red Rot): इसमें गन्ने के अंदर लाल धारियां और सड़ने की गंध आती है। इससे बचने के लिए गन्ने की अच्छी किस्मों का चयन करना चाहिए और रोगग्रस्त भाग को काटकर नष्ट कर दें। कीटनाशकों में कार्बेन्डाजिम (Carbendazim) का छिड़काव करें।

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घरेलू और देशी उपचार:

समय-समय पर खेत में जैविक मल्चिंग अर्थात् फसलों के आसपास पुआल, घास, या गोबर खाद डालकर मिट्टी को ढकें। यह जड़ों को ठंड से बचाने में सहायक होती है, जिससे पौधों पर ठंड का कम प्रभाव पड़ता है।

इसी के साथ नीम के पत्तों का काढ़ा बनाकर फसलों पर छिड़काव करें तो यह कीटों और रोगों से बचाव कर अच्छे परिणाम देता है। ठंड के समय गोबर की खाद डालें, जिससे मिट्टी में गर्मी बनी रहती है और अच्छा उत्पादन होता है। अब से पहले सूखे हुए पत्ते, कूड़ा-करकट अथवा पराली जलाकर तापमान को नियंत्रित किया जाता था; परंतु यह प्रदूषण का प्रमुख कारण बन रहा है, इसलिए सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया है। अत: आग लगाना से अलग अन्य विकल्पों को अपनाना चाहिए।

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घरेलू उपाय के अलावा कुछ कीटनाशकों का प्रयोग भी फसलों का ठंड से बचाव कर सकता है। इसके अलावा फसलों की समय पर सिंचाई करें, ताकि पौधों को ठंड से राहत मिले। खेतों के चारों ओर वायु रोधक पौधे लगाएं। रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन करें। खेतों का नियमित निरीक्षण करें और समय-समय पर कीटनाशकों का छिड़काव करें। फसलों की सुरक्षा के लिए उपाय करना आवश्यक है। घरेलू और जैविक तरीकों के साथ वैज्ञानिक उपाय अपनाकर आप अपनी फसलों को नुकसान से बचा सकते हैं और उत्पादन में सुधार कर सकते हैं। कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट पर अवश्य बताएं तथा ऐसी जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद, जय किसान॥


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