जिन्हें सबने मना किया,उन्होंने ऑर्गेनिक खेती से इतिहास लिख दिया


जब कोई युवा कहता है कि वह खेती करना चाहता है, तो अक्सर लोग हँस देते हैं। कहते हैं – "खेती में क्या रखा है? नौकरी देखो, शहर जाओ, कुछ 'बड़ा' बनो।" लेकिन कुछ ऐसे जज़्बे वाले लोग होते हैं जो इन तानों, मज़ाकों और मना करने वालों की बातों को चुनौती बना लेते हैं। वे मिट्टी से रिश्ता जोड़ते हैं, ज़हर-मुक्त खेती अपनाते हैं और वही लोग इतिहास रचते हैं। आज हम ऐसे ही कुछ किसानों की बात करेंगे जिन्होंने सबके मना करने के बावजूद ऑर्गेनिक खेती को अपनाया, और ना सिर्फ सफलता हासिल की, बल्कि एक आंदोलन भी खड़ा कर दिया।

क्यों सबने मना किया था?
ऑर्गेनिक खेती की राह आसान नहीं होती। जब कोई किसान यह तय करता है कि वह केमिकल, यूरिया, डीएपी और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करेगा, तो समाज सबसे पहले सवाल करता है:
“खाद डाले बिना फसल कैसे उगेगी? , “बाजार में कौन खरीदेगा?”,“ज्यादा दाम पर कौन खरीदेगा?”, “लागत कैसे निकलेगी?”
यह संदेह सिर्फ पड़ोसी किसान नहीं, बल्कि घरवाले भी करते हैं। और यही से शुरू होती है संघर्ष की असली कहानी।
1. विष्णु दत्ता शर्मा – एक स्कूल टीचर से मिट्टी का डॉक्टर (राजस्थान)
राजस्थान के टोंक ज़िले में एक छोटे से गांव से आने वाले विष्णु दत्ता शर्मा पहले एक सरकारी स्कूल में शिक्षक थे। लेकिन जब उन्होंने रिटायरमेंट के बाद ऑर्गेनिक खेती शुरू करने का मन बनाया, तो पूरे गांव ने ताना मारा – "अब उम्र में खेती सीखोगे?" लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
उन्होंने सबसे पहले गाय पालना शुरू किया, और गौमूत्र, गोबर, छाछ, नीम और अन्य देसी तरीकों से जीवामृत और घनजीवामृत बनाना सीखा। धीरे-धीरे उन्होंने अपनी पूरी ज़मीन पर ऑर्गेनिक खेती शुरू की। आज उनकी खेती से पैदा होने वाली हल्दी, गेहूं और सब्जियाँ देशभर में बिकती हैं।
प्रेरणा: "मिट्टी को जहर से नहीं, जीवामृत से सींचो – फसलें मुस्कुराएँगी।"
2. मालती देवी – महिला शक्ति और जैविक क्रांति (बिहार)
बिहार की एक सामान्य ग्रामीण महिला, मालती देवी को शुरू में किसी ने भी गंभीरता से नहीं लिया। उनके पति किसान थे, लेकिन कीटनाशकों और महंगी खाद की वजह से खेती घाटे में जा रही थी। गांव में जब मालती ने गोबर और छाछ से खाद बनाने की बात की, तो लोगों ने हँसी उड़ाई।
लेकिन उन्होंने SRI विधि से धान की खेती शुरू की – कम बीज, कम पानी और बिना केमिकल के। नतीजा – पहले से दो गुना ज्यादा उत्पादन। आज मालती देवी आसपास की 500 से ज्यादा महिलाओं को जैविक खेती की ट्रेनिंग देती हैं।
प्रेरणा: "जो ज़हर हम खेत में डालते हैं, वही थाली में आता है – इसे रोकना ज़रूरी है।"

3. अनिल ठाकुर – सेब की जगह सब्ज़ियों से कमाई (हिमाचल प्रदेश)
हिमाचल के किसान से पूछो कि क्या उगाते हो, तो ज़्यादातर जवाब होता है – सेब। लेकिन मंडी के बिचौलियों और गिरती कीमतों से परेशान होकर शिमला के अनिल ठाकुर ने सबको चौंकाते हुए ऑर्गेनिक सब्ज़ियाँ उगानी शुरू कीं।
शुरुआत में लोग बोले – "पहाड़ों में सब्ज़ी? और वो भी बिना खाद की?" लेकिन उन्होंने कोकोपिट, वर्मीकंपोस्ट और गोबर की खाद से खेत तैयार किया और मटर, शिमला मिर्च, ब्रोकली जैसी सब्ज़ियाँ उगाईं। आज उनका एक छोटा फार्म ही महीने में ₹2-3 लाख की आय देता है।
प्रेरणा: "जहाँ सब एक जैसे सोचते हैं, वहीं अलग सोच कर ही क्रांति आती है।"
4. फहीम कुरैशी – मुस्लिम किसान जो गौ-आधारित खेती से बना मिसाल (मध्य प्रदेश)
मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले से आने वाले फहीम कुरैशी ने जब गौ-आधारित जैविक खेती शुरू की, तो उनके समुदाय के लोग भी चौंके। लेकिन उनका मानना था – "खेती धर्म नहीं, विज्ञान है। अगर गाय से ज़हर-मुक्त फसलें मिल सकती हैं, तो उसे अपनाना चाहिए।"
उन्होंने देशी गायों का पालन शुरू किया, पंचगव्य, अमृतपानी, नीमास्त्र जैसे जैविक घोल तैयार किए। आज वे एक मॉडल फार्म चला रहे हैं, और हर महीने 300 से ज्यादा किसान ट्रेनिंग लेने आते हैं।
प्रेरणा: "धर्म चाहे कोई भी हो, लेकिन धरती माँ को ज़हर से मुक्त करना सबका कर्तव्य है।"
ऑर्गेनिक खेती से मिलते हैं ये 5 फायदे:
1. मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है – लंबे समय तक उत्पादन देने वाली ज़मीन तैयार होती है। 2. फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है – स्वाद और पोषण दोनों अधिक। 3. कीट और रोगों की प्राकृतिक रोकथाम होती है – देसी नुस्खों से कीटों पर नियंत्रण। 4. कम लागत, ज्यादा लाभ – जब केमिकल नहीं खरीदने तो लागत घटती है। 5. बाजार में अलग पहचान बनती है – जैविक उत्पादों के लिए खास ग्राहक होते हैं।

Tips जो किसान आजमाएं:
"जैविक सब्ज़ियाँ कैसे उगाएं?" – इसका जवाब आपके खेत में होना चाहिए।, "बिना यूरिया के गेहूं की खेती" – दिखाइए कि कैसे संभव है।, "गोबर से खेती में क्रांति" – अपने अनुभव साझा करें YouTube या ब्लॉग पर।, "ऑर्गेनिक हल्दी की मार्केटिंग" – ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स पर रजिस्ट्रेशन कराएं।
निष्कर्ष:
जिन्हें सबने मना किया, उन्होंने न सिर्फ खेती की दिशा बदली, बल्कि देश को दिखाया कि प्राकृतिक खेती ही भविष्य है। ये किसान अकेले नहीं हैं – ये एक लहर हैं, एक सोच हैं, एक चेतना हैं। इन्होंने दिखा दिया कि अगर आप मिट्टी से रिश्ता जोड़ें, तो लाख लोग रोकने आएं, आप इतिहास ज़रूर लिख सकते हैं।
तो अगर आप भी सोचते हैं कि खेती में कुछ अलग करना है तो डरिए मत, आगे बढ़िए। लोग रोकेंगे, हँसेंगे, मना करेंगे लेकिन एक दिन यही लोग तालियाँ भी बजाएँगे। ऐसी अमेजिंग जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ और आपको ये जानकारी कैसी लगी हमे कमेंट कर के जरूर बताइये ।।जय हिन्द जय भारत।।
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