काली मक्खी की अनोखी खेती


किसानों के बीच उच्च प्रोटीन खाद का स्रोत बनती ब्लैक सोल्जर फ्लाई (काली मक्खी) आजकल किसानों के लिए बहुत फायदेमंद सिद्ध हो रही है। यह 45 दिनों में लगभग 250 से 500 ग्राम तक बढ़ता है। इसका उपयोग किसान बायोडिग्रेडेबल कीटनाशक के रूप में तथा इसका लार्वा भी खेतों में खाद के रूप में काम में लिया जाता है। काली मक्खी पर्यावरण के लिए भी काफी लाभकारी है इसका लार्वा मछलियों मुर्गियों के लिए उच्च प्रोटीन वाले आहार के रूप में भी उपयोग होता है।

खेती की प्रक्रिया तथा उपयुक्त स्थान का चयन:
काली मक्खी के उत्पादन के लिए सही स्थान का चयन करना बहुत आवश्यक है। इसके उत्पादन के लिए ऐसी जगह की आवश्यकता होती है जहां धूप और छाया का सही संतुलन है और अच्छा वेंटिलेशन भी हो और साथ ही ध्यान रखें कि क्षेत्र में अधिक नमी व जल जमा न हो। इनके उत्पादन के लिए आदर्श तापमान 20°C से 25°C होता है।काली मक्खी के उत्पादन के लिए इनके अंडे या लार्वा खरीदें या आसपास के स्थानीय स्रोतों से प्राप्त करें। ध्यान रहे की इनके उत्पादन के अच्छे परिणाम के लिए उच्चतम अंडे या लार्वा को ही खरीदे। लार्वा की सही वृद्धि के लिए वातावरण का सही तापमान बहुत मायने रखता है, इसलिए कंटेनर के वातावरण का विशेष ध्यान रखें।

काली मक्खी के उत्पादन के लिए एक ब्रीडिंग कंटेनर तैयार करना होता है। यह इन्हें एक सुरक्षित और नियंत्रित वातावरण प्रदान करता है, जहां यह अपनी संख्या में वृद्धि आसानी से कर सके। कंटेनर में उचित वेंटीलेशन की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे मक्खियों पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन व ताजगी ले सके। कंटेनर में लार्वा के पोषण के लिए जैविक कचरा और फीड को भी व्यवस्थित रूप से रखा जाना चाहिए। कंटेनर की साफ-सफाई का भी संपूर्ण ध्यान रखें व कंटेनर में अतिरिक्त पानी की निकासी के लिए भी छेद छोड़ें। यह ब्रीडिंग कंटेनर काली मक्खियों के उत्पादन के लिए अत्यंत आवश्यक उपकरण है, जो सुरक्षा प्रबंधन और उत्पादन की क्षमता और दक्षता को बढ़ाता है।

लार्वा के सही विकास वृद्धि के लिए सुनिश्चित पानी पर आद्रता का होना भी आवश्यक है। एक बोतल स्प्रे के द्वारा समय-समय पर कंटेनर में नमी बनाए रखें; परंतु यह ध्यान रहे की सामग्री अधिक गीली ना हो ज्यादा गीलेपन से उसमें सडन भी हो सकती है। लार्वा के विकास के दौरान समय-समय पर उनकी निगरानी करते रहें। ध्यान रखें कि उन पर कोई कीट या बीमारी के संक्रमण आक्रमण ना कर रहा हो। यदि ऐसा कुछ मिले तो उसके लिए तुरंत ही आवश्यक उपाय करें।

मक्खियों को जाल में प्राप्त करना:
एक डार्क चेंबर में काली मक्खी के लार्वा को डाल जाता है। और उस चैंबर को एक दूसरे बड़े जालीदार चेंबर से अटैच कर देते हैं, जिससे कुछ दिन बाद लार्वा से मक्खी निकलती है और वह प्रकाश की और उड़ाना शुरू कर देती है। जालीदार चेंबर में प्रकाश होने के कारण सभी मक्खियां जाली में इकट्ठी हो जाती है। उत्पादन के दौरान मक्खियों की वृद्धि का ध्यान रखें ताकि अगर कोई समस्या हो तो उसका शीघ्र ही समाधान हो सके।

काली मक्खी का उपयोग:
काली मक्खियों का उपयोग फसल के कीटों के प्राकृतिक शत्रु के रूप में किया जाता है। इनका लार्वा मछलियों मुर्गियों के उच्च कोटी के आहार के रूप में होता है। इन मक्खियों से निकले हुए कुछ पदार्थ बहुत-सी औषधीय में भी उपयोग होते हैं। बायोटेक्निसन और जीव विज्ञान के अनुसंधान व जैविक कीटनाशकों के उत्पादन के लिए भी किया जाता है। इन क्षेत्रों से संबंधित बड़ी कंपनियां और किसान भी कर रहे हैं।

काली मक्खियों की खाद भारत के कई राज्यों में उपलब्ध है। इसे विशेष जैविक खाद्य केंद्र और सहकारी समितियों तथा विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी प्राप्त किया जा सकता है।तो दोस्तों इस इस प्रकार कम क्षेत्रफल होते हुए भी एक छोटे-से प्रशिक्षण के माध्यम से ब्लैक सोल्जर मक्खी का पालन किया जा सकता है, जिसकी बढ़ोतरी दर बहुत ही अधिक है। आप स्थानीय कृषकों तथा संबंधित प्रशिक्षण केंद्रों से जानकारी लेकर इस कार्य को सुचारू रूप से संचालित कर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट कर अवश्य बताएं तथा जुड़े रहें "Hello Kisaan"के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद, जय किसान॥
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