कभी था 10 लाख का कर्ज , Bamboo Farming ने बना दिया करोड़पति जाने कैसे ??


शुरूआत में जल संरक्षण के लिए उन्होंने काम किया और उसके बाद वे बांस की खेती में जुट गए, जिसने उनकी दुनिया ही बदल दी है। उनके गाँव की ज़मीन में खेती से मुश्किल से कुछ हो पाता था। न तो बिजली, न पानी और इसीलिए हमारे गाँव का नाम निपानी है मतलब कि पानी ही नहीं था।
पिता को पैरालिसिस का अटैक आया है। उनकी माँ ने उन्हें सब-कुछ छोड़कर घर लौटने के लिए कहा है। पाटिल इसके बाद अपना काम छोड़कर अपने गाँव लौट गए। पिता की हालत को देखकर पाटिल ने ठाना कि अब उन्हें जो करना है अपने गाँव में करना है। उनके मन में ख्याल आया कि अगर वह अपनी मेहनत दूसरे गांवों के सुधार में लगा सकते हैं तो अपने गाँव में वही काम क्यों नहीं कर सकते। उन्होंने अपने गाँव के 10 किमी लम्बे नाले को साफ़ करके और गहरा व चौड़ा किया, ताकि जब भी बरसात हो तो पानी इसमें इकट्ठा हो। धीरे-धीरे ही सही, उनके गाँव में पानी की स्थिति काफी हद तक सुधरी। अब तो आलम यह है कि
उनके गाँव में रेशम का काम होता है जिससे उनके गाँव का टर्नओवर 1 करोड़ रुपये सालाना है। इसके बाद, पाटिल अपने आगे के सफर के बारे में बताते हैं। उन्होंने कहा कि इस सबके बीच उन्होंने कृषि पर भी ध्यान देना शुरू किया।पाटिल ने न तो अपनी ज़मीन की जुताई और न ही कभी निराई-गुड़ाई की। उन्होंने अलग-अलग तरह के फल जैसे आम, चीकू, नारियल आदि के पेड़ लगाए और साथ ही कुछ मौसमी सब्ज़ियाँ उगाना शुरू किया। उनके पेड़-पौधों को जानवर खराब न कर दें, इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यों न खेतों की सीमा पर एक बाड़ लगा दी जाए। लेकिन बाड़ लगाने का खर्च उनके पास नहीं था। ऐसे में उन्हें पता चला कि पास की एक सरकारी नर्सरी में बांस के पेड़ मिल रहे हैं और वह भी मुफ्त। उन्होंने सोचा कि बांस के पेड़ लगाने से उन्हें प्राकृतिक तौर पर ही एक बाड़ मिल जाएगा।
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वह नर्सरी से 40 हज़ार पेड़ लेकर आए और खेतों की सीमा पर लगा दिए। पाटिल आगे बताते हैं कि दो-तीन साल बाद इन 40 हज़ार बांस से 10 लाख बांस उपजे और धीरे-धीरे लोग उनके पास बांस खरीदने के लिए आने लगे। पहले साल में उन्होंने 1 लाख रुपये के बांस बेचे और फिर अगले एक-दो साल में उन्हें इन्हीं बांसों से कुल 20 लाख रुपये का मुनाफा हुआ। जब बड़े व्यापारियों ने पाटिल से संपर्क किया तो मैंने समझा कि बांस की कितनी ज्यादा मांग है। इसके बाद इस बारे में जानकारी इकट्ठा की तो पता चला कि हर साल हमारे यहाँ बांस की आपूर्ति करने के लिए भारत सरकार को बाहर से भी बांस आयात करना पड़ता है। लेकिन अगर हमारे यहाँ किसान भाई ही बांस की खेती करने लगें तो कहीं बाहर से मंगवाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। शायद इसलिए ही बांस को सामान्य घास की केटेगरी में रखा गया है अब और इसके ट्रांसपोर्टेशन टैक्स नहीं देना पड़ता।
इसके बाद पाटिल ने सिर्फ बांस की खेती पर ध्यान दिया। उन्होंने अपने पूरे खेत में बांस के पेड़ लगाए। उनके गाँव के लोग पागल कहते थे कि बांस कौन उगाता है। लेकिन पाटिल को समझ में आ गया था कि बाज़ार के हिसाब से खेती करने में ही किसान का फायदा है। अच्छी बात यह है कि उन्होंने कभी भी ज्यादा उपज के लालच में कोई रसायन इस्तेमाल नहीं किया। उनका मॉडल प्राकृतिक खेती का ही रहा। आज उनकी ज़मीन 30 एकड़ से बढ़कर 54 एकड़ हो गई है और इस पूरी ज़मीन पर बांस और अन्य कुछ पेड़-पौधों का घना जंगल है।
वह बताते हैं की खेती करते हुए लगभग 20 साल हो गए हैं। लेकिन जब से तकनीक थोड़ी बढ़ी है जैसे मोबाइल, इंटरनेट तो और भी फायदा हुआ है। पाटिल ने अपना भी यूट्यूब चैनल शुरू किया, जहां बांस की खेती की वीडियो पोस्ट कर रहे हैं।
पाटिल ने पिछले 4-5 सालों में देशभर की यात्रा करके बांस की लगभग 200 किस्म इकट्ठा की और अपने खेत में लगाईं। उनके मुताबिक, बांस का पेड़ लगाने के 2-3 साल बाद आप इससे फसल ले सकते हैं। एक बार लगाया हुआ बांस, अगले 7 साल तक फसल देता है। एक बांस एक पेड़ से आपको 10 से 200 बांस मिलते हैं और एक बांस की कीमत आपको 20 रुपये से लेकर 100 रुपये तक मिल सकती है। पाटिल की सफल बांस की खेती को देखते हुए उन्हें नागपुर में आयोजित एग्रो विज़न कांफ्रेंस में बुलाया गया। इस कांफ्रेंस में उन्होंने किसानों को पारंपरिक खेती के साथ-साथ बांस जैसी कमर्शियल खेती करने की सलाह भी दी।
इसके बाद उन्होंने इंडियन बम्बू मिशन के एडवाइजर के तौर पर नियुक्त किया गया। पाटिल को अब तक बहुत-सी जगह सम्मानों और पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। लेकिन सबसे ज्यादा ख़ुशी उन्हें इस बात की है कि वह अपने किसान भाइयों की मदद कर पा रहे हैं।
अब पाटिल की बांस की खेती को देखने के लिए और उनसे सीखने के लिए किसानों का ताँता लगा रहता है। वह किसानों को निशुल्क बांस की खेती की ट्रेनिंग देते हैं। इसके अलावा, लोगों की मांग पर उन्होंने बांस की नर्सरी भी तैयार करना शुरू किया। उनके यहाँ से बांस की पौध लेकर महाराष्ट्र में लगभग 2 हज़ार एकड़ ज़मीन पर बांस लगाया गया है। पाटिल ने बताया की नर्सरी और बांस की फसल से हर साल का टर्नओवर लगभग 5 करोड़ रुपये का है। बहुत से लोगों को इस बात पर यकीन नहीं होता कि बांस से कोई इतना कैसे कमा सकता है। लेकिन सच यही है कि इस इको-फ्रेंडली बांस की पूरी दुनिया में मांग है।
हमारे अपने देश में बांस को प्रोसेस करके प्रोडक्ट्स बनाने वाली इंडस्ट्री इतनी बड़ी है। अगर इस इंडस्ट्री को अपने देश से ही प्राकृतिक और जैविक रूप से उगे हुए अच्छे बांस मिले तो उन्हें कहीं से भी आयात करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
भविष्य के लिए उनकी योजना बांस की प्रोसेसिंग यूनिट शुरू करने की है। पाटिल ने न सिर्फ अपनी बल्कि अपने गाँव की किस्मत भी बदली है। आज भी वह किसी भी किसान भाई की मदद के लिए तैयार रहते हैं। उनका कहना है कि कोई भी किसान उन्हें बेहिचक संपर्क करे और वह उसकी हर मुमकिन कोशिश करेंगे।
उसके साथ संपर्क करने के लिए यहां क्लिक करें!!
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