जामुन से कमाई का कमाल

भारत में खेती सिर्फ खेतों तक सीमित नहीं रही है अब किसान नई सोच, नवाचार और तकनीक से करोड़ों की कमाई के मॉडल बना रहे हैं। ऐसा ही एक प्रेरणादायक उदाहरण है उदयपुर के जसवंतगढ़ गांव के राजेश ओझा जी का, जिन्होंने जामुन जैसे मौसमी फल को सालभर की कमाई का जरिया बना दिया। कभी परफ्यूम के बिजनेस में नुकसान झेलने वाले राजेश जी ने अब जामुन से ऐसा मॉडल तैयार किया है, जिससे आज उनका सालाना टर्नओवर 2.5 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है।

नुकसान से नवाचार तक की यात्रा
राजेश ओझा जी पहले परफ्यूम के बिजनेस से जुड़े थे, लेकिन उस क्षेत्र में उन्हें बड़ा नुकसान हुआ और उन पर करीब 15 लाख रुपये का कर्ज चढ़ गया। ऐसे कठिन समय में उन्होंने हार मानने के बजाय अपने आस-पास के संसाधनों पर ध्यान दिया। गांवों में मिलने वाले जामुन ने उनकी सोच को नया दिशा दी। उन्होंने देखा कि जामुन की शेल्फ लाइफ (सहेजने की अवधि) बहुत कम होती है मुश्किल से एक दिन। ज्यादातर किसान और व्यापारी जामुन खराब हो जाने के कारण उसे फेंक देते थे। बस यहीं से शुरू हुआ “जोवाकि एग्रो फूड” का सफर एक ऐसा यूनिट जिसने जामुन के हर हिस्से को उपयोगी बना दिया।
महिलाओं के हाथों से चलने वाला प्रोसेसिंग यूनिट
राजेश जी ने उदयपुर के जसवंतगढ़ में करीब 5000 वर्ग फीट में अपना प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित किया। इसके साथ ही 2000 वर्ग फीट पैकिंग एरिया और 1000 वर्ग फीट का कोल्ड रूम बनाया गया, जिसमें -18°C तक तापमान बनाए रखा जाता है ताकि उत्पाद लंबे समय तक सुरक्षित रहें। इस यूनिट में कई ग्रामीण महिलाएं काम करती हैं। ये महिलाएं हाथों से जामुन की गुठलियां निकालती हैं और पल्प तैयार करती हैं, जिससे आगे विभिन्न उत्पाद बनाए जाते हैं। यह न सिर्फ एक बिजनेस मॉडल है, बल्कि महिलाओं के लिए रोजगार का बड़ा माध्यम भी बन चुका है।
जामुन से बनते हैं यह सारे उत्पाद
राजेश जी की कंपनी “जोवाकि एग्रो फूड” जामुन से कई प्रकार के स्वास्थ्यवर्धक और स्वादिष्ट उत्पाद बनाती है, जैसे:
जामुन पापड़: बिना शुगर और बिना प्रिज़रवेटिव का पापड़, जो पूरे साल जामुन का स्वाद और फायदे देता है। जामुन टॉफ़ी: बच्चों और बुजुर्गों दोनों के लिए सेहतमंद विकल्प। जामुन सिरका (Vinegar): डायबिटीज़ और ब्लड शुगर नियंत्रण के लिए बेहद उपयोगी। जामुन पाउडर: गर्मी और पाचन संबंधी समस्याओं में फायदेमंद। जामुन स्ट्रिप्स और ग्रीन टी: हेल्थ कॉन्शस लोगों के लिए आधुनिक प्रोडक्ट्स।
इन सभी उत्पादों की खासियत यह है कि इनकी शेल्फ लाइफ 365 दिन तक होती है। यानी जामुन सिर्फ दो महीने का फल होते हुए भी अब सालभर कमाई का जरिया बन चुका है।
आधुनिक तकनीक और हाइजीनिक मैनेजमेंट
राजेश ओझा जी ने अपने यूनिट में कोल्ड स्टोरेज सिस्टम पर विशेष ध्यान दिया है। इस कोल्ड रूम को बनाने में करीब 20 लाख रुपये का खर्च आया, लेकिन इसमें सरकारी सब्सिडी का लाभ भी मिला। उनकी फैक्ट्री में पूरा काम हाइजीनिक और स्टैंडर्ड मैनेजमेंट सिस्टम के तहत होता है ताकि उत्पादों की क्वालिटी बनी रहे और उपभोक्ता को शुद्ध, प्राकृतिक चीज़ मिले।
मार्केटिंग और सेल्स मॉडल
जोवाकि एग्रो फूड का लगभग 30% प्रोडक्ट डायरेक्ट कस्टमर को जाता है यानी खुदरा बिक्री के रूप में। बाकी 70% उत्पाद बल्क में विभिन्न कंपनियों और वितरकों को सप्लाई किए जाते हैं। राजेश जी ने पैकेजिंग पर भी खूब काम किया है आकर्षक, पर्यावरण के अनुकूल और उपभोक्ता को भरोसा दिलाने वाली पैकिंग ने उनके ब्रांड को मार्केट में अलग पहचान दी है।
स्वास्थ्य के लिहाज से फायदेमंद
जामुन अपने आप में औषधीय फल है। इसमें आयरन, कैल्शियम, विटामिन C और फाइबर भरपूर मात्रा में होते हैं। जोवाकि एग्रो फूड के जामुन उत्पाद चाहे पाउडर हो, पापड़ या सिरका — डायबिटीज़, पाचन तंत्र और त्वचा के लिए फायदेमंद हैं। क्योंकि ये सभी उत्पाद बिना चीनी और बिना केमिकल प्रिज़रवेटिव के बनाए जाते हैं, इसलिए ये पूरी तरह नेचुरल और हेल्दी हैं।
एक प्रेरणा हर किसान के लिए
आज राजेश ओझा जी का सालाना टर्नओवर 2.5 करोड़ रुपये है और उनका मॉडल अब दूसरे किसानों के लिए रोल मॉडल बन चुका है। उन्होंने दिखा दिया कि अगर सही सोच, मेहनत और प्रोसेसिंग तकनीक का मेल हो, तो एक साधारण फल भी करोड़ों की कमाई दे सकता है।
उनका कहना है जामुन भले दो महीने आता है, लेकिन हमने उसे सालभर की कमाई बना दिया।
भविष्य की योजना
अब राजेश जी अपने प्रोडक्ट्स को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स और एक्सपोर्ट मार्केट तक पहुंचाने की योजना बना रहे हैं। वे चाहते हैं कि भारत के हर राज्य में ऐसे छोटे प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित हों ताकि ग्रामीण युवा और महिलाएं भी आत्मनिर्भर बन सकें।

निष्कर्ष
राजेश ओझा जी की कहानी सिर्फ एक बिजनेस स्टोरी नहीं, बल्कि गांव से उठी नवाचार की गाथा है। उन्होंने यह साबित किया कि जब सोच बदलती है, तो किस्मत भी बदल जाती है। “जोवाकि एग्रो फूड” का यह जामुन मॉडल आने वाले समय में भारत के फूड प्रोसेसिंग सेक्टर के लिए एक प्रेरक उदाहरण बन चुका है — जहाँ जामुन अब सिर्फ फल नहीं, बल्कि रोजगार, सेहत और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गया है। ऐसी अमेजिंग जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ और आपको ये जानकारी कैसी लगी हमे कमेंट कर के जरूर बताइये ।। जय हिन्द जय भारत ।।
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