शकरकंद की खेती: कम खर्च में ज्यादा मुनाफा

भारत में जब भी सर्दियों का मौसम आता है, तो बाजारों में एक फसल खूब दिखने लगती है — शकरकंद। इसका स्वाद मीठा होता है और इसे उबालकर, भूनकर या स्नैक के रूप में बड़े शौक से खाया जाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यह फसल न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि किसानों के लिए बेहद फायदे का सौदा भी है। आइए जानते हैं कि शकरकंद की खेती कैसे की जाती है, किस मिट्टी में होती है, कितनी लागत आती है और किसान इससे कितना मुनाफा कमा सकते हैं।

शकरकंद क्या है और इसकी खासियत
शकरकंद (Sweet Potato) एक कंद वाली फसल है जो जमीन के अंदर विकसित होती है। इसका वैज्ञानिक नाम Ipomoea batatas है। इसमें भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, आयरन, कैल्शियम और विटामिन A पाया जाता है। यही कारण है कि इसे “ऊर्जा देने वाली फसल” भी कहा जाता है। भारत में शकरकंद मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में उगाई जाती है।
शकरकंद की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
शकरकंद एक उष्ण और आर्द्र जलवायु वाली फसल है। इसे गर्म और नमी वाली परिस्थितियाँ पसंद हैं। तापमान: 20°C से 35°C तक बढ़िया रहता है। बारिश: लगभग 700–1000 मिमी वर्षा पर्याप्त होती है। बहुत अधिक ठंड या पाला इस फसल को नुकसान पहुँचा सकता है, इसलिए इसे सर्दी से पहले या बाद के मौसम में लगाया जाता है।
मिट्टी की आवश्यकता
शकरकंद हल्की, रेतीली-दोमट मिट्टी में अच्छी उपज देती है। मिट्टी का pH 5.5 से 7.5 तक होना चाहिए। पानी का निकास अच्छा होना चाहिए क्योंकि जलभराव से कंद सड़ जाते हैं। अगर खेत की मिट्टी बहुत भारी है, तो उसमें रेत या गोबर की खाद मिलाकर उसकी बनावट सुधारी जा सकती है।

भूमि की तैयारी
खेती शुरू करने से पहले खेत को 2–3 बार जोतकर भुरभुरी बना लें। उसके बाद खेत को समतल करें और 60 से 75 सेंटीमीटर की दूरी पर मेड़ (ridge) बनाएं। प्रत्येक मेड़ की ऊंचाई लगभग 20–25 सेंटीमीटर होनी चाहिए ताकि कंद आसानी से विकसित हो सकें। इसके साथ ही 10–15 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर डालना बहुत जरूरी है। इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।
बीज और पौध तैयार करना
शकरकंद की बुवाई बीज से नहीं, बल्कि लताओं (vines या cuttings) से की जाती है। हर कटिंग 20–25 सेंटीमीटर लंबी होनी चाहिए और उसमें 3–4 गाँठें होनी चाहिए। रोपाई करते समय लता को मिट्टी में लगभग आधा भाग गाड़ दें। 60x30 सेंटीमीटर की दूरी पर पौधे लगाना उत्तम रहता है।
शकरकंद की बुवाई का समय - उत्तर भारत में: जून से जुलाई के बीच बुवाई की जाती है। दक्षिण भारत में: फरवरी से मार्च या अगस्त से सितंबर में। फसल लगभग 120 से 150 दिन में तैयार हो जाती है।
सिंचाई और देखभाल
पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करें, इसके बाद 7–10 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करते रहें। बारिश के मौसम में सिंचाई की जरूरत कम होती है। खेत में पानी रुकना नहीं चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए शुरुआती 30 दिनों में 2–3 बार निराई-गुड़ाई करें। अगर पौधों में पत्ते पीले पड़ने लगें, तो गोबर की खाद या जैविक खाद (Vermicompost) डालें।
खाद और उर्वरक का प्रयोग
प्राकृतिक खेती में किसान गोबर की खाद, नीमखली, वर्मी कंपोस्ट जैसी जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं। अगर रासायनिक उर्वरक डालना हो तो – नाइट्रोजन: 50 किलो फॉस्फोरस: 25 किलो पोटाश: 50 किलो प्रति हेक्टेयर इनकी आधी मात्रा बुवाई के समय और बाकी आधी 45 दिन बाद डालनी चाहिए।
रोग और कीट नियंत्रण
शकरकंद पर आमतौर पर कीटों का प्रकोप बहुत कम होता है, लेकिन कुछ सामान्य समस्याएं होती हैं – तना छेदक कीट: पौधे को कमजोर कर देता है। जड़ गलन रोग: जलभराव की वजह से होता है। इनसे बचाव के लिए खेत में पानी जमा न होने दें और पौधों को नीम तेल के छिड़काव से सुरक्षित रखें।
फसल की कटाई
शकरकंद की फसल 4–5 महीने में तैयार हो जाती है। जब पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ने लगें और बेलें सूखने लगें, तो समझें फसल तैयार है।कटाई करते समय ध्यान रखें कि कंद को नुकसान न पहुँचे। कटाई के बाद कंदों को 2–3 दिन छाया में सुखाकर स्टोर करें।

उपज और मुनाफा
अगर खेती सही तरीके से की जाए तो प्रति हेक्टेयर 150–250 क्विंटल तक उपज मिल सकती है। लागत: लगभग ₹30,000 से ₹40,000 प्रति हेक्टेयर। कुल आमदनी: ₹1.2 से ₹1.5 लाख प्रति हेक्टेयर तक। यानी किसान एक एकड़ में 50,000 से 70,000 रुपए तक का शुद्ध मुनाफा कमा सकते हैं।
शकरकंद से बने उत्पाद
आज शकरकंद केवल खाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे कई मूल्यवर्धित उत्पाद भी बनाए जाते हैं, जैसे – शकरकंद चिप्स, शकरकंद स्टार्च
मिठाई और हलवा, शकरकंद आटा (ग्लूटेन फ्री फूड के रूप में बहुत लोकप्रिय) इन उत्पादों की मार्केट में अच्छी मांग है, जिससे किसान अपनी फसल का दाम और बढ़ा सकते हैं।
सफल खेती के लिए कुछ सुझाव
1. हमेशा प्रमाणित पौध सामग्री का उपयोग करें। 2. खेत में पानी का निकास अच्छा रखें। 3. जैविक खादों का अधिक प्रयोग करें। 4. फसल चक्र अपनाएं — हर साल शकरकंद की जगह दूसरी फसल लें। 5. कटाई के बाद कंदों को हवादार जगह पर रखें ताकि वे ज्यादा दिन तक टिकें।
निष्कर्ष
शकरकंद की खेती उन किसानों के लिए बेहद उपयोगी है जो कम लागत में ज्यादा लाभ लेना चाहते हैं। इसकी फसल जलवायु के लिहाज से लचीली है, ज्यादा मेहनत नहीं मांगती और मार्केट में सालभर इसकी मांग बनी रहती है। अगर किसान इसे वैज्ञानिक तरीकों से करें और प्रसंस्करण (processing) की दिशा में कदम बढ़ाएं, तो यह फसल उन्हें अच्छी आर्थिक स्वतंत्रता और स्थिरता दे सकती है। अगर आप भी किसान हैं और कोई ऐसी फसल ढूंढ रहे हैं जिसमें लागत कम और मुनाफा ज्यादा हो — तो शकरकंद की खेती आपके लिए सुनहरा मौका हो सकती है। ऐसी अमेजिंग जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ और आपको ये जानकारी कैसी लगी हमे कमेंट कर के जरूर बताइये ।। जय हिन्द जय भारत ।।
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