अखरोट की खेती: ऊँचाई वाले इलाकों की सोने जैसी फसल

भारत में फलों की खेती में एक नई दिशा लेकर आ रहा है अखरोट (Walnut)। इसे “ड्राई फूड” भी कहा जाता है, क्योंकि इसके आकार से लेकर गुण तक, दोनों ही मस्तिष्क के लिए फायदेमंद हैं। लेकिन बहुत कम किसान जानते हैं कि अखरोट की खेती न सिर्फ पौष्टिक फल देती है, बल्कि लंबे समय तक स्थायी आमदनी भी सुनिश्चित करती है। आज हम विस्तार से जानेंगे कि अखरोट की खेती कैसे करें, कौन-कौन सी किस्में उपयुक्त हैं, जलवायु-भूमि कैसी होनी चाहिए, और इससे किसान कितनी कमाई कर सकते हैं।

अखरोट की पहचान और विशेषताएँ
अखरोट (Walnut) को अंग्रेज़ी में Juglans regia कहा जाता है। यह एक ठंडे इलाकों में पाया जाने वाला कठोर छिलके वाला फल है। इसका पेड़ लगभग 40-60 फीट तक ऊँचा हो सकता है और एक बार लग जाने के बाद 100 साल तक फल देता है। अखरोट का गूदा सूखा फल (Dry Fruit) के रूप में काम आता है, और इसमें प्रोटीन, ओमेगा-3 फैटी एसिड, कैल्शियम, फॉस्फोरस, और विटामिन E भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।
उपयुक्त जलवायु और स्थान
अखरोट की खेती ठंडे और ऊँचाई वाले इलाकों में सबसे अच्छी होती है। भारत में इसके लिए सबसे उपयुक्त राज्य हैं — जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश यह फसल 800 मीटर से 3000 मीटर की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में बेहतर फल देती है। अखरोट के पौधों को सर्दी में ठंड और गर्मियों में मध्यम तापमान (25-30°C) की जरूरत होती है।
मिट्टी की स्थिति
अखरोट की खेती के लिए गहरी, उपजाऊ, दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। pH स्तर 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए। जल निकास अच्छा होना जरूरी है, क्योंकि पानी भराव से जड़ें सड़ सकती हैं। खेती से पहले खेत की गहरी जुताई करके गोबर की सड़ी हुई खाद (20-25 टन प्रति हेक्टेयर) डालना बहुत फायदेमंद होता है।
अखरोट की प्रमुख किस्में
भारत में कई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं, जो अधिक उत्पादन देती हैं:
1. Lake English – अच्छी गुणवत्ता और बड़े आकार के फल। 2. Placentia – ऊँचाई वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त। 3. Franquette – ठंड सहने की क्षमता ज्यादा। 4. Wilson – जल्दी फल देने वाली किस्म। 5. Local Selection (Kashmiri Walnut) – स्वाद और तेल की मात्रा के लिए प्रसिद्ध।

पौधारोपण का समय और विधि
अखरोट के पौधे दिसंबर से फरवरी के बीच लगाए जा सकते हैं। 10×10 मीटर की दूरी पर गड्ढे (1 मीटर गहरे और चौड़े) खोदें। हर गड्ढे में मिट्टी के साथ गोबर की खाद और नीम की खली डालें। रोपण के बाद हल्की सिंचाई करें। पौधे की सही बढ़वार के लिए पहले 3 साल तक हल्की छंटाई और कीट नियंत्रण आवश्यक है।
सिंचाई प्रबंधन
अखरोट को अधिक पानी की जरूरत नहीं होती, लेकिन सूखे इलाकों में नियमित सिंचाई जरूरी है। गर्मियों में हर 15-20 दिन में सिंचाई करें। फूल आने के समय (मार्च-अप्रैल) और फल बढ़ने के समय (जून-जुलाई) पानी की कमी न होने दें। ड्रिप इरिगेशन प्रणाली अपनाने से जल की बचत और उत्पादन दोनों में बढ़ोतरी होती है।
कीट और रोग नियंत्रण
अखरोट पर कुछ सामान्य कीट व रोग लगते हैं, जैसे: Fruit fly (फल मक्खी) Aphids (महू) Leaf spot (पत्तों पर धब्बे) इनसे बचाव के लिए नीम का छिड़काव, जैविक फफूंदनाशक और साफ-सफाई आवश्यक है।
उत्पादन और फल तुड़ाई
अखरोट का पेड़ लगभग 8-10 साल में पूरी तरह से फल देने लगता है। औसतन एक पेड़ से 40-50 किलो अखरोट निकलता है। 1 हेक्टेयर में करीब 100 पेड़ लगाए जा सकते हैं, जिससे प्रति हेक्टेयर 40-50 क्विंटल अखरोट का उत्पादन संभव है। फलों की तुड़ाई सितंबर से नवंबर के बीच की जाती है, जब फल का बाहरी छिलका फटने लगता है।
अखरोट की कीमत और कमाई
अखरोट का बाजार मूल्य बहुत अच्छा रहता है। सामान्य अखरोट ₹500 से ₹900 प्रति किलो तक बिकता है। कश्मीरी और ऑर्गेनिक अखरोट ₹1000 से ₹1500 प्रति किलो तक जाते हैं। यदि हम औसतन ₹700 प्रति किलो का भाव मानें, तो 1 हेक्टेयर से सालाना ₹25 से ₹30 लाख तक की आय संभव है — जबकि खर्च लगभग ₹3 से ₹5 लाख तक आता है। इस तरह यह खेती दीर्घकालिक और टिकाऊ आमदनी का स्रोत बन जाती है।
अखरोट प्रसंस्करण और वैल्यू एडिशन
कच्चे अखरोट बेचने के बजाय किसान इनसे अधिक कमाई कर सकते हैं, जैसे: अखरोट के तेल का उत्पादन, अखरोट बटर, अखरोट कुकीज़ और चॉकलेट, अखरोट पाउडर (प्रोटीन सप्लिमेंट) सरकार और कृषि विश्वविद्यालय इन उत्पादों को बनाने के लिए प्रशिक्षण भी देते हैं, जिससे किसान खुद ब्रांड बना सकते हैं।

सरकारी सहायता और योजनाएँ
भारत सरकार अखरोट जैसी फलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ चला रही है: राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर (MIDH) पौधारोपण और ड्रिप इरिगेशन के लिए 40-60% तक की सब्सिडी भी दी जाती है। किसान नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) या हॉर्टिकल्चर विभाग से संपर्क कर लाभ उठा सकते हैं।
निष्कर्ष
अखरोट की खेती सिर्फ एक फसल नहीं, बल्कि एक लंबी अवधि का निवेश है। एक बार लगाया गया पौधा पीढ़ियों तक फल देता है। अगर किसान इसे सही स्थान, उचित किस्म और वैज्ञानिक तरीके से लगाएं तो यह फसल सोने के पेड़ साबित हो सकती है। आज जब दुनिया स्वास्थ्य और ऑर्गेनिक उत्पादों की ओर बढ़ रही है, तो अखरोट की खेती भारतीय किसानों के लिए एक बेहतरीन मौका बन सकती है — जिससे न केवल आमदनी बढ़ेगी, बल्कि देश में “हेल्दी फूड” का उत्पादन भी तेजी से बढ़ेगा। ऐसी अमेज़िंग जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello kisaan के साथ और आपको ये जानकारी कैसी लगी हमे कमेंट कर के जरूर बताइये ।। जय हिन्द जय भारत ।।
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