2025 में आने वाला मानसून: किसानों के लिए चिंता की घंटी


भारत में खेती-किसानी का सीधा नाता बारिश यानी मानसून से है। हर साल जून की शुरुआत से किसान उम्मीद करते हैं कि अब मेघ बरसेंगे और खेतों में हरियाली लहराएगी। लेकिन 2025 में मानसून ने देरी कर दी है। आमतौर पर केरल में 1 जून को दस्तक देने वाला मानसून इस बार करीब 10-12 दिन देरी से पहुंचा। और इसका असर धीरे-धीरे पूरे देश में देखने को मिल रहा है।
तो सवाल है – 2025 में मानसून के देरी से आने का क्या मतलब है? इससे किसान, खेती, पानी, बाजार और आम जनता पर क्या असर पड़ेगा? आइए विस्तार से जानते हैं।
क्या है 2025 के मानसून की स्थिति?
भारतीय मौसम विभाग (IMD) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 में दक्षिण-पश्चिम मानसून ने सामान्य से 10-15 दिन देरी से भारत में प्रवेश किया है। केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, यूपी और बिहार जैसे बड़े राज्यों में बारिश की शुरुआत में देरी हुई है।
कुछ जगहों पर मामूली बारिश हुई, लेकिन बड़ी मात्रा में बारिश नहीं होने के कारण बुवाई में देरी और किसानों की चिंता में बढ़ोतरी हुई है। खासकर वे किसान जो धान, मूंगफली, सोयाबीन जैसी खरीफ फसलों पर निर्भर हैं, वो अब उलझन में हैं।

मानसून लेट क्यों हुआ?
1. एल-नीनो (El Niño) का असर
प्रशांत महासागर में सतह के तापमान में बदलाव के कारण एल-नीनो की स्थिति बनी है। इसका सीधा असर भारतीय मानसून पर पड़ता है और बारिश की मात्रा घट जाती है या समय पर नहीं होती।
2. जलवायु परिवर्तन (Climate Change)
तेज़ी से बढ़ते तापमान और अस्थिर मौसम के कारण मानसून पैटर्न में बदलाव आ रहा है। कभी ज़्यादा बारिश तो कभी बिल्कुल नहीं – ये नया ट्रेंड बन गया है।
3. स्थानीय मौसम गड़बड़ी
अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में बनने वाले कम दबाव वाले क्षेत्र कमज़ोर रहे, जिससे मानसून आगे नहीं बढ़ पाया और देरी हुई।
खेती-किसानी पर क्या असर पड़ेगा?
1. बुवाई में देरी
धान, कपास, बाजरा जैसी खरीफ फसलें समय पर बोई जाती हैं। मानसून लेट होने से बुवाई का सही समय निकल रहा है, जिससे पैदावार पर असर पड़ेगा।
2. बीज और उर्वरक का नुकसान
कई किसानों ने उम्मीद के मुताबिक पहले ही बुवाई कर दी थी। लेकिन बारिश न होने से बीज अंकुरित नहीं हुए और दोबारा बुवाई करनी पड़ रही है, जिससे लागत बढ़ रही है।
3. फसल चक्र बिगड़ेगा
जब खरीफ की फसल देर से बोई जाएगी, तो उसकी कटाई भी देरी से होगी। इसका असर रबी फसलों (जैसे गेहूं, सरसों) के समय पर बोने पर पड़ेगा।
पानी का संकट और भूजल पर असर
मानसून के लेट आने से तालाब, नहर, झील और जलाशयों में पानी कम है। खेती के लिए सिंचाई संभव नहीं है और पीने के पानी की समस्या भी बढ़ सकती है। कई जगहों पर बोरवेल का जलस्तर नीचे चला गया है।

अर्थव्यवस्था और आम जनता पर असर
1. फसल उत्पादन में कमी
अगर बारिश सामान्य से कम रही तो इस साल कुल फसल उत्पादन में गिरावट होगी, जिससे देश की कृषि GDP पर असर पड़ेगा।
2. खाद्यान्न महंगे होंगे
धान, दलहन, तिलहन जैसी चीजें कम होने पर इनकी कीमतें बढ़ सकती हैं। इससे आम लोगों की रसोई पर असर होगा।
3. ग्रामीण रोजगार घटेगा
खेती से जुड़ा श्रम घटेगा, जिससे मनरेगा जैसे रोजगार कार्यक्रमों की मांग बढ़ेगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ेगा।
क्या करना चाहिए किसानों को?
1. फसल विविधिकरण
कम पानी वाली फसलों जैसे बाजरा, अरहर, तिल, मूंग आदि को प्राथमिकता दें। इससे जोखिम कम होगा।
2. जल संरक्षण
बारिश के पानी को रोककर खेत में उपयोग करना जरूरी है। टपक सिंचाई, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग अपनाएं।
3. मौसम जानकारी पर ध्यान दें
IMD और कृषि विज्ञान केंद्रों से जुड़कर मौसम की सटीक जानकारी लें। इससे निर्णय लेना आसान होगा।
4. फसल बीमा का लाभ लें
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत फसलों का बीमा कराएं ताकि नुकसान होने पर मुआवजा मिल सके।
निष्कर्ष: सावधानी ही समाधान है
2025 में मानसून का देर से आना एक गंभीर संकेत है। यह दिखाता है कि जलवायु अब पहले जैसा नहीं रहा। ऐसे में हमें खेती के पारंपरिक तरीकों से हटकर नई सोच और तकनीक के साथ काम करने की ज़रूरत है। सरकार को चाहिए कि किसानों को समय पर सलाह, मदद और राहत योजनाएं दे। वहीं, किसान भाइयो को भी फसल चुनते समय जलवायु की स्थिति, लागत और जोखिम को ध्यान में रखना होगा। ऐसी अमेजिंग जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ और आपको जानकारी कैसे लगी है कमेंट कर के जरूर बताइये आपका अनुभव हमारे लिए महत्वपूर्ण है। ।।जय हिन्द, जय किसान ।।
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