क्या ऑर्गेनिक फार्मिंग ज़्यादा मीथेन पैदा करती है? सुभाष पालेकर का बयान और उसकी सच्चाई

21 Jul 2025 | NA
क्या ऑर्गेनिक फार्मिंग ज़्यादा मीथेन पैदा करती है? सुभाष पालेकर का बयान और उसकी सच्चाई

आज जब दुनिया जलवायु परिवर्तन, ज़हरीले खाने और मिटी की गिरती गुणवत्ता से जूझ रही है, ऐसे में जैविक खेती (Organic Farming) को एक समाधान के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन जब प्राकृतिक खेती के जनक सुभाष पालेकर ये कहते हैं कि – "ऑर्गेनिक खेती ज़्यादा मीथेन (Methane) बनाती है और इससे पर्यावरण को नुकसान होता है",

तो सवाल उठता है – क्या वाकई जैविक खेती पर्यावरण के लिए उतनी फायदेमंद नहीं है जितना हम सोचते हैं?

आइए इस बयान को समझते हैं, परखते हैं, और इसका सच जानते हैं सादा और साफ भाषा में।

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सबसे पहले समझें – ऑर्गेनिक खेती क्या है?

ऑर्गेनिक खेती यानी जैविक खेती वो तरीका है जिसमें:

रासायनिक खाद और कीटनाशक का उपयोग नहीं होता

गोबर, गोमूत्र, हरी खाद, वर्मी कम्पोस्ट जैसे प्राकृतिक संसाधन इस्तेमाल किए जाते हैं

मिट्टी की उर्वरता को बचाए रखने के लिए प्राकृतिक चक्रों का पालन किया जाता है

इस खेती का मकसद है – स्वस्थ भोजन, ज़हरीले रसायनों से मुक्त फसल, और धरती माँ की सुरक्षा।

मीथेन गैस क्या होती है और क्यों चर्चा में है?

मीथेन (CH₄) एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है। यह गैस ग्लोबल वॉर्मिंग में कार्बन डाइऑक्साइड से 25 गुना ज्यादा प्रभाव डालती है।

मीथेन पैदा होती है:

धान के पानी भरे खेतों से

गोबर, मल-मूत्र के एनेरोबिक सड़न से

मवेशियों के पाचन तंत्र से

और कभी-कभी कचरे या खाद के ढेर से भी

यानि अगर खेती सही तरीके से ना की जाए, तो ये गैस धरती के तापमान को बढ़ाने में योगदान दे सकती है।

Organic Farming in india produce methane


अब बात सुभाष पालेकर की – उन्होंने ऐसा क्यों कहा?

सुभाष पालेकर मानते हैं कि:

 “जो ऑर्गेनिक खेती आज बाज़ार में हो रही है, उसमें भारी मात्रा में गोबर, पत्तियां, कचरा सीधे खेत में डाला जाता है। अगर वह बिना विघटन (decomposition) के डाला जाए, तो मिट्टी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और वहां मीथेन बनने लगता है।”

उनका कहना है कि:

ऑर्गेनिक फार्मिंग को अगर गलत ढंग से किया जाए, तो वह पर्यावरण के लिए नुकसानदायक भी हो सकती है।

जैविक खेती के नाम पर सिर्फ कम्पोस्ट डाल देना खेती नहीं है, बल्कि इसके पीछे समझ, संतुलन और प्रक्रिया होनी चाहिए।

क्या पालेकर का यह बयान वैज्ञानिक है?

 हां, आंशिक रूप से यह वैज्ञानिक रूप से सही है।

अगर खेत में:

गोबर को बिना सड़ाए डाल दिया जाए

बहुत ज्यादा जैविक कचरा डाल दिया जाए

खेत की मिट्टी में हवा (ऑक्सीजन) का आवागमन ना हो

तो वहां एनेरोबिक सड़न शुरू हो जाती है जिससे मीथेन निकलने लगती है।

 लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सभी जैविक खेती नुकसान करती है।

अगर ऑर्गेनिक खेती को सही प्रक्रिया से किया जाए – जैसे:

पहले गोबर को वर्मी कम्पोस्ट बनाना

खेत में मिट्टी को समय-समय पर पलटना

अच्छी जल निकासी (drainage) बनाए रखना

तो मीथेन उत्सर्जन बहुत ही कम हो जाता है।

 फिर क्या रासायनिक खेती सही है?

नहीं, रासायनिक खेती में भी ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं, जैसे:

नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) – यह गैस मीथेन से भी 300 गुना ज़्यादा खतरनाक होती है, जो रासायनिक यूरिया व डीएपी से निकलती है।

पेस्टीसाइड और फर्टिलाइज़र से मिट्टी की जैविक क्रियाएं रुक जाती हैं, जिससे कार्बन सिंक कमज़ोर होता है।

Zero Budget Natural Farming


समाधान क्या है?

1. प्राकृतिक और वैज्ञानिक जैविक खेती को बढ़ावा देना

जैविक खेती में बिना समझ के काम नहीं चल सकता। सड़ी-गली खाद, कंपोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट का संतुलित और नियंत्रित प्रयोग ज़रूरी है।

2. ZBNF (Zero Budget Natural Farming) जैसे मॉडल अपनाना

सुभाष पालेकर द्वारा सुझाए गए ZBNF मॉडल में गाय का गोबर, गोमूत्र, जीवामृत, घनजीवामृत जैसे सटीक अनुपातों में बने उत्पाद इस्तेमाल होते हैं — जिससे ना केवल मिट्टी उपजाऊ बनती है, बल्कि गैस उत्सर्जन भी नहीं होता।

3. धान की खेती में नई तकनीकें

जैसे – SRI (System of Rice Intensification) जिससे पानी कम लगता है और मीथेन कम बनता है।

4. पशुपालकों को गोबर प्रबंधन की ट्रेनिंग

अगर गोबर को सही से संसाधित किया जाए तो यह बायोगैस, खाद और सीएनजी का स्रोत बन सकता है न कि मीथेन उत्सर्जन का कारण।

 निष्कर्ष: क्या ऑर्गेनिक खेती ज़्यादा मीथेन बनाती है?

अगर जैविक खेती को बिना समझ के किया जाए, तो हां, वह मीथेन उत्सर्जन कर सकती है।

लेकिन अगर सही तकनीक, संतुलन और वैज्ञानिक तरीके से जैविक खेती की जाए, तो यह पर्यावरण के लिए सबसे सुरक्षित और टिकाऊ खेती है।

सुभाष पालेकर का इशारा इसी ओर था — जैविक खेती में भावनाएं नहीं, वैज्ञानिक समझ होनी चाहिए।

 अंतिम बात

खेती सिर्फ पैदावार का मामला नहीं है, यह धरती, पर्यावरण और अगली पीढ़ी की जिम्मेदारी भी है। जैविक खेती हो या प्राकृतिक, अगर हम सही तरीके से काम करें, तो ना सिर्फ उपज अच्छी होगी, बल्कि धरती भी मुस्कराएगी।। ऐसी जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ और आपको ये जानकारी कैसी लगी कमेंट कर के जरूत बताइये  ।।जय हिन्द जय भारत ।।

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