गाय-भैंस के गैस पास करने पर टैक्स – क्या सच में ऐसा होता है?

22 Jun 2025 | NA
गाय-भैंस के गैस पास करने पर टैक्स – क्या सच में ऐसा होता है?

जब हम टैक्स की बात करते हैं, तो आमतौर पर हमारे दिमाग में इनकम टैक्स, जीएसटी या प्रॉपर्टी टैक्स आता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ देशों में गाय और भैंस जैसी पालतू जानवरों के "गैस छोड़ने" यानी मीथेन गैस उत्सर्जन पर भी टैक्स लगता है? यह सुनने में अजीब जरूर लगता है, लेकिन यह पूरी तरह सच है।

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कौन सा देश लगाता है गैस टैक्स?

यह अनोखा और चौंकाने वाला टैक्स न्यूज़ीलैंड में लगाया जाता है। यह देश अपनी हरी-भरी वादियों, डेयरी उद्योग और पर्यावरण संरक्षण के लिए जाना जाता है। यहां की अर्थव्यवस्था में कृषि और पशुपालन का बहुत बड़ा योगदान है। लेकिन इसी के साथ एक बड़ी पर्यावरणीय चुनौती भी है – ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन।

गैस पास करना और पर्यावरण संकट?

गाय, भैंस और अन्य जुगाली करने वाले पशु जैसे भेड़-बकरी जब खाना पचाते हैं, तो उनके पेट में मीथेन गैस बनती है। ये गैस वे डकार या पाद के रूप में बाहर निकालते हैं। मीथेन एक बहुत ही शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जो कार्बन डाइऑक्साइड से लगभग 25 गुना ज्यादा असरदार होती है ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने में।

न्यूज़ीलैंड में लगभग 50% ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन सिर्फ खेती और पशुपालन से आता है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा मीथेन गैस का होता है जो पशुओं से निकलती है। इसलिए सरकार ने इसे कम करने के लिए एक कड़ा कदम उठाया  एग्रीकल्चर ग्रीनहाउस टैक्स।

न्यूज़ीलैंड में नया कानून क्या कहता है?

न्यूज़ीलैंड सरकार ने घोषणा की है कि 2025 से किसानों को अपने पशुओं से निकलने वाली गैसों के लिए टैक्स देना होगा। इस टैक्स का मकसद है कि किसान पर्यावरण के प्रति जागरूक हों और ऐसे तरीके अपनाएं जिनसे मीथेन उत्सर्जन कम हो। सरकार किसानों को इस दिशा में मदद भी कर रही है – जैसे खास चारा, पशु आहार में बदलाव, जैविक तरीके, और वैज्ञानिक अनुसंधानों से जुड़ाव।

किसानों की प्रतिक्रिया

कई किसानों ने इस टैक्स का विरोध किया। उनका कहना है कि पशुपालन उनकी आजीविका है, और इस तरह के टैक्स से उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होगी। लेकिन सरकार का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की जिम्मेदारी सबकी है और इससे बचने के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा। सरकार ने वादा किया है कि टैक्स से मिलने वाले पैसे को वापस कृषि क्षेत्र में ही निवेश किया जाएगा ताकि पर्यावरण के अनुकूल तकनीक विकसित की जा सके।

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क्या भारत में भी ऐसा हो सकता है?

भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है और यहां भी करोड़ों की संख्या में गाय-भैंस हैं। लेकिन भारत में अभी तक इस तरह का कोई गैस टैक्स नहीं लगाया गया है। हालांकि, भारत को भी इस मुद्दे पर सोचना चाहिए क्योंकि यहां भी पर्यावरणीय संकट बढ़ता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियर का पिघलना, और गर्मी की तीव्र लहरें इसके प्रमाण हैं। भारत में इस तरह के टैक्स की बजाय जैविक गोबर गैस प्लांट, खास चारा योजना, कम मीथेन उत्पन्न करने वाली नस्लों का पालन जैसी योजनाएं ज्यादा व्यवहारिक और किसानों के अनुकूल हो सकती हैं।

निष्कर्ष

गाय या भैंस के गैस पास करने पर टैक्स एक मजाक नहीं, बल्कि आने वाले समय की गंभीर सच्चाई है। जलवायु परिवर्तन की चुनौती इतनी बड़ी है कि अब हर क्षेत्र को उसमें अपनी भूमिका निभानी होगी -चाहे वह उद्योग हो, परिवहन हो या पशुपालन।

न्यूज़ीलैंड का यह कदम भले ही अजीब लगे, लेकिन यह एक साहसी और भविष्यदर्शी नीति है। भारत जैसे देशों को इससे प्रेरणा लेकर अपने स्तर पर नवाचार करना चाहिए ताकि पशुपालन और पर्यावरण दोनों का संतुलन बना रहे।

“अब सिर्फ सांसें नहीं, गैसें भी गिनी जाएंगी ताकि आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ हवा मिल सके।” ऐसी जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello kisaan के साथ। जय हिंदी जय किसान।

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