ट्रैक्टर: पेट्रोल नहीं, केवल डीज़ल क्यों?

20 Jul 2025 | NA
ट्रैक्टर: पेट्रोल नहीं, केवल डीज़ल क्यों?

भारत की मिट्टी जितनी कठोर और मेहनती है, उससे जुड़ा हर औज़ार भी वैसा ही होना चाहिए — मजबूत, भरोसेमंद और जेब पर हल्का। जब बात खेतों के असली साथी ट्रैक्टर की होती है, तो दिमाग में सबसे पहले डीज़ल ट्रैक्टर की तस्वीर ही उभरती है। लेकिन यहीं एक सवाल उठता है क्या कभी आपने पेट्रोल वाले ट्रैक्टर के बारे में सुना है? अगर नहीं, तो क्यों? और अगर कहीं बने भी हैं, तो फिर वो सड़कों या खेतों पर दिखते क्यों नहीं?

इस लेख में हम इस सवाल का जवाब सादा भाषा में और तकनीकी कारणों के आधार पर देंगे।

Tractor: Why no petrol, only diesel?


1. पेट्रोल और डीज़ल में क्या फर्क है?

सबसे पहले समझते हैं कि पेट्रोल और डीज़ल इंजन में क्या मुख्य अंतर होता है:

बिंदु                                                    पेट्रोल इंजन                                                                  डीज़ल इंजन


ईंधन की कीमत                                     महंगा                                                                          थोड़ा सस्ता

टॉर्क (कर्षण शक्ति)                             कम                                                                           ज्यादा

माइलेज                                             कम                                                                          अधिक

ताकत                                         हल्के काम के लिए                                                       भारी काम के लिए

रखरखाव                                         आसान                                                                      थोड़ा मुश्किल

मतलब: खेतों के लिए ऐसा इंजन चाहिए जिसमें ताकत ज्यादा हो, जो भारी औज़ार खींच सके – और यह डीज़ल इंजन ही कर सकता है।

2. ट्रैक्टर को चाहिए ताकत, न कि रफ्तार

ट्रैक्टर कोई कार नहीं जो सिर्फ चलने भर का काम करे। ये तो:

  1. मिट्टी जोतता है
  2. भारी ट्रॉली खींचता है
  3. कीचड़ और पथरीले ज़मीन में भी चलता है
  4. डीज़ल इंजन कम आरपीएम (RPM) पर भी ज्यादा टॉर्क देता है। इससे ट्रैक्टर धीमी स्पीड में भी दमदार काम कर सकता है।
  5. वहीं पेट्रोल इंजन तेज़ स्पीड पर तो ठीक है, लेकिन ज्यादा वजन या खेत में गहराई से काम करने में कमजोर पड़ जाता है।

3. खर्च का खेल – पेट्रोल से ट्रैक्टर चलाना महंगा सौदा

आज भारत में पेट्रोल की कीमत डीज़ल से 8-10 रुपये प्रति लीटर ज्यादा होती है।

अगर एक ट्रैक्टर दिन में 10 लीटर ईंधन खपत करे तो:

डीज़ल से खर्च = ₹800 (मान लीजिए ₹80 प्रति लीटर)

पेट्रोल से खर्च = ₹900 (मान लीजिए ₹90 प्रति लीटर)

रोज़ ₹100 का फर्क, तो साल भर में ₹30,000 से भी ज्यादा!

गांव के छोटे किसानों के लिए यह एक बड़ा नुकसान है।

4. टिकाऊपन और मजबूती में डीज़ल इंजन नंबर 1

पेट्रोल इंजन की कमियाँ:

ज़्यादा गरम हो जाता है

जल्दी घिस जाता है

लगातार काम में ठहर नहीं पाता

डीज़ल इंजन की खूबियाँ:

लंबे समय तक चल सकता है

भारी लोड पर भी काम करता है

इंजन की लाइफ ज्यादा होती है (10-15 साल तक)

इसलिए जब बात खेतों की हो – तो किसान को चाहिए दमदार और टिकाऊ मशीन, यानी डीज़ल इंजन।

Tractor diesel engine efficiency

5. किसानों की पसंद: परंपरा + अनुभव

कई किसान कहते हैं:

 “भैया! डीज़ल वाला ट्रैक्टर ही असली होता है। पेट्रोल तो मोटरसाइकिल के लिए है।”

ये बात गलत नहीं है। किसान का अनुभव यही बताता है कि:

डीज़ल आसानी से गांव में मिल जाता है

डीज़ल मैकेनिक हर गांव में होता है

डीज़ल ट्रैक्टर को चलाना और मरम्मत करवाना सस्ता पड़ता है

6. क्या कभी पेट्रोल ट्रैक्टर बने?

हाँ, शुरुआत में कुछ पेट्रोल (गैसोलीन) ट्रैक्टर बने थे – खासकर अमेरिका और यूरोप में।

लेकिन:

वो सिर्फ छोटे बगीचों या लॉन के लिए ठीक थे

खेतों में भारी काम नहीं कर पाए

ईंधन खर्च बहुत ज्यादा था

इसलिए भारत जैसे देश में, जहां खेती कम लागत में ज्यादा उत्पादन मांगती है, वहां पेट्रोल ट्रैक्टर नहीं टिक पाए।

 7. भविष्य क्या कहता है? क्या पेट्रोल की जगह कुछ नया आएगा?

भविष्य में ट्रैक्टर टेक्नोलॉजी बदल रही है:

 इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर:

Sonalika जैसे ब्रांड पहले ही इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर लॉन्च कर चुके हैं।

 सीएनजी और बायोगैस ट्रैक्टर:

कुछ कंपनियां CNG या गोबर गैस से चलने वाले ट्रैक्टर बना रही हैं, जो सस्ते और पर्यावरण के लिए बेहतर हैं।

 इसका मतलब ये है कि पेट्रोल नहीं, बल्कि हरित ऊर्जा (Green Energy) ही भविष्य है।

8. क्या डीसी मोटर ट्रैक्टरों में इस्तेमाल हो सकती है?

जैसे-जैसे दुनिया इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की ओर बढ़ रही है, वैसे-वैसे ट्रैक्टरों में भी नई तकनीकों की एंट्री हो रही है — और इनमें डीसी मोटर एक अहम भूमिका निभा सकती है।

विशेष रूप से "श्रृंखला-घुमावदार डीसी मोटर (Series-Wound DC Motor)" अपनी इस खासियत के लिए जानी जाती है कि:

 यह उच्च प्रारंभिक टॉर्क (High Starting Torque) उत्पन्न करती है, यानी जब गाड़ी या मशीन पूरी तरह रुकी हो, तो उसे हिलाने के लिए जो जोर चाहिए — वह यह मोटर जबरदस्त ढंग से देती है।

Agricultural diesel tractors advantages

इस कारण:

यह मोटर ट्रेनों, ट्रॉली सिस्टम, बड़ी क्रेनों और यहां तक कि बड़े वाइपर सिस्टम्स में भी इस्तेमाल होती है।

खेती में, जहां मिट्टी में ट्रैक्टर को खींचकर चलाना होता है, और भारी उपकरण जुड़े होते हैं — वहां ऐसा ही जोर जरूरी होता है।

हालांकि वर्तमान में ज़्यादातर ट्रैक्टर डीज़ल से चलते हैं, लेकिन भविष्य में जैसे-जैसे बैटरी टेक्नोलॉजी और डीसी मोटर्स का समन्वय बेहतर होगा, ऐसी हाई टॉर्क वाली डीसी मोटरें ट्रैक्टरों में एक गेम-चेंजर बन सकती हैं।

निष्कर्ष: 

डीज़ल इंजन आज भी ट्रैक्टरों की जान हैं, लेकिन यह भी सच है कि आने वाला समय नई तकनीकों का है।

डीसी मोटर, विशेष रूप से श्रृंखला-घुमावदार प्रकार, अपने उच्च प्रारंभिक टॉर्क के कारण भविष्य में इलेक्ट्रिक ट्रैक्टरों में क्रांति ला सकती हैं लेकिन जब तक बैटरी तकनीक सस्ती और टिकाऊ नहीं होती — भारत जैसे देश में डीज़ल ट्रैक्टर ही खेतों के राजा बने रहेंगे।गर आपको यह लेख अच्छा लगा तो इसे जरूर शेयर कमेंट करें और ऐसी जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ ।। जय हिन्द जय भारत ।।

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